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________________ 19. कुवलयमाला, 16, 21 :- पविसंति सुक्क सरिसा महापुरोहिया । 20. कुवलयमाला, 48. 20, बाहमणानां निवेद्यात्मा ततः शुद्धो भविष्यति । 21. कुवलयमाला, 112. 21 पावकम्महं चिलायहं दुट्टुघुट्टु-सइसउं बंभणु मारियव्वउ । 22. कुवलयमाला, 118 3:- सोहेइ वच्च घरए उज्झइ उच्चिट्ठमल्लय- णिहाए । लोण उवहसिज्ज किरएसो बंभणो आसि ॥ 23. कुवलयमाला, 258. 14 :- सामल - वक्षस्थल - घोलमाण- सिय- वम्ह-सुत्त-सोहिल्लो । पवणंदोलिर-सोहिय-कंठद्ध- णिबद्ध-वसणिल्लो || 24. कुवलयमाला, 171.5: - अणेय - वेय-समय- सत्थ पारयस्स दुयाइणो । 25. समराइच्च कहा, पृ. 348 । 26. वासुदेव हिडी (प्र. खं.), 119 । 27. तत्रैव, 162 28. तत्रैव, 170 29. तत्रैव, 238-4 30. बुद्ध प्रकाश-'ठाकुर' : सेन्ट्रल एशियाटिक जर्नल, भाग 3 (1957) पृ. 220-237. 31. एपिग्राफिया इंडिका, भाग 32, पृष्ठ 318 32. एपिग्राफिया इंडिका, भाग 14. पृ. 274 33. वी. सी. लाहा - सम-क्षत्रिय ट्राइब्स ऑव एन्शियन्ट इण्डिया, पृ. 120 34. बुद्ध प्रकाश पूर्वोद्धरित पृष्ठ 237 । 35. कुवलयमाला, 134. 16 भो भो सुरासुर - णव- गंधव्वा, अज्जपभिई भगवओ वंसो इक्खागो, 36. वासुदेव हिण्डी, 197৷ 37. तत्रैव, 210,368 38. तत्रैव, 233, 296 । 39. जैन, जे. सी., पृ. 139 40. वासुदेव हिण्डी, 145 41. तत्रैव, 139, 154 1 42. तत्रैव, 126, 127 43. तत्रैव, 59 1 44. तत्रैव, 86, 283 45. वासुदेव हिण्डी, 133 । (75)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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