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________________ अध्याय 1 जैन कथाओं का ऐतिहासिक परिचय प्राचीन काल से ही कथा साहित्य का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कथा कहानियां मानव के मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन का स्त्रोत रही हैं। वैदिक साहित्य में हालांकि कथा, आख्यान, या उपाख्यान आदि में से कोई शब्द नहीं पाया जाता परन्तु 'ऋग्वेद' में स्तुतियों के रूप में कहानी के मूलतत्व पाये जाते हैं ।" ब्राह्मण ग्रन्थों में भी, जैसे शतपथ ब्राह्मण की पुरूरवा और उर्वशी की कथा का उल्लेख मिलता है। उपनिषत्काल में गार्गी, याज्ञवल्क्य सवांद, सत्यकाम-जावाल एवं जनश्रुति के पुत्र राजा जानश्रुति की कथा का उल्लेख मिलता है । 2" रामायण और महाभारत विशेषतः महाभारत बहुत सी कहानियों का कोश है । इस प्रकार वैदिक एवं महाकाव्यकालीन साहित्य हृदयग्राही, प्रेरक रोचक का मनोरजंक कथाओं से समृद्ध है । कालांतर में बौद्ध एवं जैन धर्मो के आविर्भाव एवं विकास के साथ इन धर्मो के साहित्य का भी विकास परिलक्षित होता है। उदाहरणार्थ, बौद्ध जातक कथायें एवं पंचतन्त्र की रोचक कहानियां। ये कथायें पालि एवं संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं। गुणाढ्य की वृहत्कथा कहानियों का भण्डार है। इसकी भाषा पैशाची प्राकृत है । प्राकृत कथाओं का अभिक्रम आगम ग्रन्थों में उपलब्ध है। जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर की शिक्षाओं को आगम कहा गया है इन आगमों को 'श्रुतज्ञान' अथवा सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। जैन परम्परा के अनुसार, अर्हत भगवान ने आगमो का प्ररूपण किया और उनके गणधरों ने इन्हे सूत्ररूप में निबद्ध किया ।” आगम साहित्य की भाषा अर्ध मागधी है, जबकि एक अन्य टीकाकार हेमचन्द्र ने इसे आर्ष प्राकृत या प्राचीन प्राकृत भाषा माना है ।" आगम साहित्य में धार्मिक शिक्षाओं को कथा माध्यम से प्रस्तुत किया गया
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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