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________________ 17. गंगापट 18. चिंघय 19. चित्रपडी 20. चीरमाला 21. चीवर 22. चेलिय 23. थण उतरिज्ज 24. दरलीव 25. दिवयवस्त्र 26. धवलमदंध् 27. धूसर-कप्पड 28. घोत-धवल 29. णिथय-पंट्टसुं 30. नेत्र युगल, नेत्रपट 31. पटी 32. पड 33. पर-वसन 34. पोत 35. फालिक 36. भायन-कप्पड 37. मलिण-कुचेल 38. युगल 39. रत्त याइ-कप्पड 40. वल्कल दुकूल 41. समायोग 42. सिहावड 43. साटक 44. हंसगर्भ समराइच्चकहा में उल्लिखित आभूषण इस प्रकार है-कटक, केयूर, कर्णभूषण, कुण्डल, मुक्तावली, नुपुर, मुद्रिका, मणिमेखला, मुक्ताहार, चूडा रत्न, विवध रत्न, खचित रशना, कलाप, कंकण, कण्ठाभरण, कटिसूत्र, रत्नजटित मुकुट । शरीर को स्त्री और पुरूष दोनो ही विभिन्न प्रकार से सजाते थे। कुवलयमाला में वर्णित अलंकार:-अट्ठट्ठ-कंठयाभरण, अवतंस, रत्न कंठिक, कंठिका, कटक, कटिसूत्र, मणिक्क-कटक, ललमाण-कटक, काँची, कणिरकाँची, कर्णफूल, किकिणी, कुंडल, मणिकुंडल, रत्न कुंडल, जालमाला, दाम, दमिल्ल, नूपुर, मणिनूपुर, पाटला, महामुकुट माला, मुक्तावली, मुक्ताहार, मेखला, मणिमेखला, रत्नावली, रत्नालंकार, रसणा मणिरसणा, वनमाला, वलय वैजयन्ती माला, सुवर्ण, हार, गीवासुत्त, चक्कल दारूण । खण्ड -ब आर्थिक दशा जैन कथा साहित्य में वर्णित समाज की आर्थिक दशा का अनुमान समकालीन समाज के जीव को पार्जन के साधनों, व्यापारिक पद्धति एवं, मुद्रा आदि से लगाया जा सकता है। हरिभद्र की दृष्टि में अर्थ की बड़ी महत्ता है। "अत्थरहिओ खु पुरिसो अपुरिसो चेव"319 अर्थात धन रहित व्यक्ति को पुरूष ही नही माना है। प्राचीन भारत के व्यापारिक क्षेत्र में यद्यपि धन कमाने का प्रमुख साधन अनेक वस्तुओ का क्रय विक्रय ही था, तथापि धनार्जन के लिए अनेक
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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