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________________ उद्यान में स्थित मंदिर की यात्रा करने के लिये अपनी धाय एवं सखियों सहित जाती हुई वनदत्ता को ममदन महोत्सव में आये हुए मोहदत्त ने देखा। दोनों में अनुराग हो गया ।105 स्त्री-पुरूष दोनों ही इस उत्सव में सम्मिलित होते थे। ____ अष्टमी चन्द्र महोत्सव-यह उत्सव भी स्त्रियों द्वारा मनाया जाता था एवं306 पुरूप भी इसमें सम्मिलित होते थे। वे भी उत्सव का आनन्द उठाते थे, परन्तु प्रधानता नारियों की ही रहती थी। मृत्यु-संस्कार:-मृत्यु संस्कार का वर्णन वसुदेव हिण्डी में उपलब्ध है। लोक मृतक सन्यासी का शव पालकी में रखकर एक जुलूस के साथ अग्नि संस्कार के लिये ले जाते थे। जुलूस के साथ तुरही बजाते थे और फूलों की वर्षा करते थे। चंदन की लकड़ी की चिता बनाई जाती थी और उस पर शव रखा जाता था। शव पर घी और मधु का लेप लगाया जाता था। तत्पश्चात चिता में आग लगाई जाती थी। कुवलयमाला के अनुसार मानभट अपने माता-पिता एवं पत्नी के शवों को कुएँ से निकालकर उनका उचित संस्कार कररता है |307 सुन्दरी के पति के मृत्यु हो जाने पर अर्थी बनायी गयी तथा उस पर शव को रखा गया। उसे ले जाने के लिये सुन्दरी से कहा गया कि पुत्री, तुम्हारा पति मर गया है, उसे श्मशान ले जाकर अग्नि-संस्कार करने दो ।309 किन्तु सुन्दरी प्रेमान्ध हहोने के कारण इसके लिये तैयार नही हुई तथा स्वयं उस कंधे पर लादकर निर्जन स्थान पर ले गयी। क्योंकि वह अपने पति से बिछुड़ना नहीं चाहती थी। अग्नि-संस्कार के बाद मृतक को पानी देने की प्रथा थी309 जो पुत्र द्वारा सम्पन्न होती थी।310 मृतक की अस्थयों को गंगा मे विसर्जन करने से धर्म होता है, ऐसी मान्यता थी 311 चंडसोम अपने भाई एवं बहिन का अग्नि संस्कार कर ब्राहमणों को सर्वस्व दान कर तीर्थ स्थान को चला गया। मृतक को तर्पण देने के बाद ब्राहमणभोज भी कराया जाता था।112 (58)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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