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________________ उल्लिखित था कि वह कुंज मे उससे भेंट करें। वासुदेव को यह अच्छा नहीं लगा तथा वे पत्नी से भेंट करने बाग में नहीं गये 2003 | वहुविवाह प्रथा वासुदेव हिण्डी में सिव204, संब205, कान्हा 206, वक्कलसिरी207, और दो नायक वासुदेव और धम्मिल–दोनो राज कुमारों के उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि राजघरानों में वहुविवाह प्रचलित था। जंबू208 और इम्भपुत्र 209 के उदाहरणें से ऐसा वर्णन प्राप्त होता है कि व्यवसायी वर्ग में भी बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी । इसके परिणाम स्वरूप सह-पत्नियों में कलह उत्पन्न हो जाया करता था गया 210 | वासुदेव हिण्डी के अनुसार वासुदेव एक विशेष प्रकार की संहिता का अनुसरण करते थे और सभी पलियों के साथ न्यायोचित वर्ताव करते थे । यह पलियों की वरीयता 211 पर निर्भर करता था। एक आदर्श कुल-वधू अपने पति के रूप और विशेषताओं पर ध्यान न देकर, पति को देव समझती थी । 212 एक कुमारी जो राजघराने में जन्म लेती थी, पर्दे के अन्दर रहती थी, परन्तु जब सार्वजनिक अवसरों में उपस्थित होती थी, उस समय अपने मुंह को खोल देती थी 214 और नगर में वंद गाड़ी में चलती थी । वासुदेव हिण्डी में उपरोक्त आदर्शों का अनुसरण, दूसरे शब्दों, में करने का संदर्भ है एक पत्नी अपने पति के प्रति निष्ठावान (पदिभत्ता) होती थी। वह किसी दूसरे आदमी के सम्बन्ध में सोच नहीं सकती थी । धमदंती में ऐसी निष्ठा पति के प्रति थी कि उसके ऊपर जंगल215 में शेर और सांप हमला नहीं कर सकते थे। बंधुमती जो वासुदेव की एक पत्नी थी, उसका कहना था कि उसके पति सन्यासी, राजा और देवता 216 से भी महान हैं। वासुदेव हिण्डी में चरित्रहीन महिलाओं के उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं जो समाज के विभिन्न वर्गो की थी, जैसे राजघराने217, ब्राह्मण218 और वैश्य के घरानों की-19 | स्त्रियों के स्वामिभक्ति का एक सुस्पष्ट उदाहरण एक व्यवसयी नागसेन की कहानी से प्राप्त होता है। इस कहानी के अनुसार जो व्यक्ति विवाहिता महिला के पातिव्रत का उलंघन करने का प्रयास करता था, उसे मृत्यु दण्ड का सामना करना पड़ता था । वासुदेव ( 48 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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