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________________ प्राक्वक्तव्य जैन कथा साहित्य पूर्वमध्यकालीन इतिहास के अध्ययन के लिये विशेष उपयोगी रहा है। जिसके अर्न्तगत राजस्थान, गुजरात और समीपवती श्रेत्रों के ऐतिहासिक, सामाजिक आर्थिक तथा धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है . आठवी शताब्दी ई. भारतीय सांस्कृतिक तत्वों के संक्रान्ति काल का परिचायक कहा जा सकता है। जिसके सन्धिकाल में प्राचीन तथा मध्यकालीन दोनो व्यवस्थाये परस्पर मिश्रित हुई प्रतीत होती है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध पांच अध्यायो मे विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय मे कथा साहित्य को ऐतिहासिक सन्दर्भो के साथ कथाओं के विविध रूपो में यथा-धर्मकथा, अर्थकथा और कामकथा आदि के रूप में उल्लिखित किया गया है। द्वितीय अध्याय में सामायिक समाज व्यवस्था को आधार रूप दिया गया है। वर्ण जाति एवं उपजातियो के अध्ययन के साथ-साथ विविध सामाजिक सस्थाओ का भी अध्ययन प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का विषय रहा है और उपलब्ध सामग्रियो के आधार पर विषय का विवेचन करने का भरपूर प्रयास किया गया है। सामाजिक जीवन के साथ-साथ तत्कालीन जीवन में अर्थ व्यवस्था का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इसी को लक्ष्य कर आर्थिक जीवन से सम्बन्धित विविध महत्वपूर्ण तत्वो का अध्ययन शोध प्रबन्ध का विषय रहा है। सामाजिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक परिप्रक्ष्य में, जैन कथाओ में वर्णित धार्मिक जीवन, इस शोध प्रबन्ध के तृतीय अध्याय का प्रमुख विषय रहा है। जैन कथाओं में वर्णित धार्मिक जीवन ने समकालीन कला एवं स्थापत्य को प्रभावित किया जिसका विवेचन शोध प्रबन्ध के चौथे अध्याय मे किया गया है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के प्रस्तुतीकरण मे मै सर्वप्रथम अपनी शोध पर्यवेक्षिका आदरणीया डा. पुष्पा तिवारी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं जिनके कुशल निर्देशन एवं प्रोत्साहन के बिना शायद यह कार्य संभव नहीं था ! श्रद्धेय प्रोफेसर विद्याधर मिश्रा, डा. जय नारायण पाण्डेय एवं डा. वनमाला मधोलकर, एवं डा. डी. मंडल, आर्चायजन, प्राचीन इतिहास, सस्कृति एव पुरातत्व विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रति हार्दिक कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने मुझे, अपना स्नेह शुभाशीष, प्रोत्साहन एवं निर्देशन दिया। अततः मै श्री चक्रपाणि मणियार, श्री रजनीश एवं अपने परिवारजनों के प्रति भी आभारी हूँ जिन्होंने इस कृति को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने में विविध रूप मे सहयोग दिया। विजया मिश्रा (त्रिपाठी)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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