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________________ जातियों का उल्लेख मिलता है । आर्य जातियों के अर्न्तगत, ब्राहमण, क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्र, चार वर्ण बताये गये हैं, जबकि अनार्य जातियों में, शक यवन, शबर, बर्बर, काय आदि जातियों की एक लम्बी सूची है। जैन कथा कृतियों में वर्णित सामाजिक स्तरीकरण संक्षेप में निम्नवत I वर्ण व्यवस्था ब्राह्मणः - वासुदेव हिण्डी तथा अन्य जैन कथा ग्रन्थों के अनुसार सामाजिक व्यवस्था के क्रम में ब्राह्मणों को उच्चस्तरीय सम्मान प्राप्त था वे हर प्रकार के सम्मान प्राप्त करने के योग्य समझे जाते थे' । भय के कारण यह सम्मान लोगों से उन्हें नहीं मिलता था बल्कि ब्राह्मणों ने एक विश्वास और श्रद्धा अपने को सम्मान प्राप्त करने के लिये लोगों में पैदा की जिसका लाभ चोरों ने ब्राह्मणों के छदम वेष में उठाया तथा भ्रमण करने वाले अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए । विशेष अवसरों पर जैसे विवाह या देवता के सम्मान में होने वाले उत्सवों 10 में ब्राह्मणों को भोज पर आमन्त्रित किया जाता था। एक ब्राहमण युवक के लोभ का भी संदर्भ प्राप्त होता है जो दुग्ध पदार्थ का वमन कर, उसे पुनः प्राप्त करना चाहता था क्योंकि उसे यह पदार्थ स्वादिष्ट लगा । एवं अन्य स्थानों पर जाकर दक्षिणा भी प्राप्त करना चाहता था 10 ये सभी सुविधायें जो ब्राह्मण जाति को प्रदान की गयीं थी, उनकी जड़े चक्कम विचार में थी 11 मनुस्मृति12 में वर्णित ब्राह्मणों के छः मुख्य कर्त्तव्यों मैं विहित सुविधाओं की जड़ें चक्कम में थी । ये मुख्य कर्त्तव्य इस प्रकार है:- शास्त्रों का अध्ययन, अध्यापन, याज्ञिक कृतियों को सम्पन्न करना तथा कराना, दान देना और उन सबको स्वीकार करना । वासुदेव हिण्डी में ब्राह्मणों को अज्ञानी13, कामुक 14 और हत्या करने वाला भी कहा गया है । तथापि अहिंसा व्रत का पालन करने वाले गृहस्थ जैन धर्म के अनुयायियों की भाँति आदर्श जीवन व्यतीत करने ( 26 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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