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________________ 24. प्रबन्ध चिन्तामणि भृशं श्रुतत्वान्न कथा: पुराणा: प्रीणांति चेतांसि तथा वुधानाम ॥ (पौराणिक कथाओं के बार-बार श्रवण करने से पंडित जनों का चित्त प्रसन्न नहीं होता) . 25. वासुदेव हिण्डी, भाग 2, मुनि जिनविजय जी के बसंत महोत्सव, संवत 1984 में “कुवलयमाला” लेख से उद्धृत। 26. जैन, जे. सी. पूर्वोद्धित, पृ. 372 । 27. उपभिति भवप्रपञ्चकथा, 1-51-52 । 28. आन द लिटरेचर ऑव द श्वेताम्बर जैनस लीपजिगं, 1922, 29. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 1508 । 30. शास्त्री नेमिचन्द्र, पूर्वोद्धरित, पृष्ठ 37। 31. मुनि जिनविजय द्वारा संपादित आत्मानन्द जैन ग्रन्थ माला, भावनगर की ओर से सन् 1930 और सन् 1931 में प्रकाशित1 इसका गुजराती भाषांतर प्रोफेसर सांडेसरा ने किया है जो उक्त ग्रन्थमाला की ओर से वि. सं. 2003 में प्रकाशित हआ है। 32. वा. हि., पृ. 20, प्रथम खण्ड-प्रथम अंश । 33. शास्त्री नेमिचन्द्र, पूर्वोद्धरित, पृष्ठ 38 । 34. 'नायाधम्मकहाओं' में दोवइ की कहानी और ‘उवासगदसो' गृहस्थ उपासको की कहानी, इस सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य है । सन्यासी द्वारा निदान का सादृश्य भगवद्गीता अध्याय 6 के योग भ्रष्ट प्रकरण-श्लोकों (35-47) से तुलनीय है। 35. वासुदेव हिण्डी (प्रथम खण्ड) के उदाहरण ये है:धम्मिल (पृ. 74-76), पज्जुन्न और संबा (85-91), अंगवन्ही (112), वासुदेव (114-118), स्तवती और लसुनिया (219), सोमसिरी (223-234), वासुदेव हिण्डी (द्वि. खं.) मे नल और दमयन्ती की कहानी का वर्णन (पृ. 61 बी-73ए)।। 36. सोमदेव के कथासरित्सागर में भी लावाणक लंबक, सूर्य प्रभ लंबक, महाभिषेक लंबक इत्यादि नाम दिये गये हैं। वासुदेव के भ्रमण की भांति नर वाहनदत्त का विवाह जिस कन्या से होता है उसी के नाम से लंबक कहा जाता है। 37. डा. आल्सडोर्फ का 'बुलेटिन ऑव द स्कूल ऑव ओरिष्टिएल स्टडीज' जिल्द 8 मे प्रकाशित लेख तथा वासुदेव हिण्डी के गुजराती अनुवाद का उपोद्घात । 38. शास्त्री नेमिचन्द्र, पूर्वोद्धरित, पृष्ठ 39। 39. ब्रह्मण धर्म मे पिप्लाद अथर्ववेद के प्रणेता माने जाते है । अथर्ववेदीय प्रश्न उपनिषद् (1-1) मे भारद्वाज, सत्यकाम, गार्ग्य, आश्वलायन, भार्गव आदि ब्रह्मपरायण ऋषि पिप्पलाद के समीप उपस्थित होकर प्रश्न करते है, पिप्पलाद उन्हें उपदेश देते है। 40. शास्त्री नेमिचन्द्र, पूर्वोद्धरित, पृष्ठ 40 । 41. अनेकान्त जयपताका, भाग-2 भूमिका, पृ. 30 । (23)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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