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________________ क्या, संस्कृत कथाओं मे भी नही मिलता है। धर्मकथा के क्षेत्र में समराइच्चकहा बेजोड़ है। इसकी मोलिक उद्भावनायें उत्तरवतीकथा साहित्य के लिए आदर्श रहीं हैं। दण्डी, सुबन्धु और बाण भट्ट की दरबारी अलंकृत कथा शैली का परित्याग कर हरिभद्र ने सुसंस्कृत बुद्धिवालों के लिए परिष्कृत शैली अपनायी है। समराइच्चकहा ने धर्म-कथा शैली की प्रौढ़ता प्रदान की, जिससे यह शैली उततरवत्तीलेखकों के लिए भी आदर्श रही। हरिभद्र के शिष्य उद्योतन सूरि ने समराइच्चकहा के कथाशिल्प के आधार पर कुवलयमाला जैसी सर्वोत्कृष्ट रचना लिखी है। इसमें सन्देह नही कि उद्योतन सूरि की यह कृति अनुपम है। कला की दृष्टि से इसकी समकक्षता करने वाली प्राकृत में कोई रचना नही है। संस्कृत में किन्ही बातों के आधार पर कादम्बरी को इसकी तुलना में उपस्थित किया जा सकता है। जैन कथाओं में कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, द्रव्य, गुण तत्व, धर्मोप देश प्रभृति के साथ कथा रस विद्यमान है। कथा का विकास विरोध और द्वन्दों के बीच होता है। हरिभद्र की लघुकथाओं में दृष्टान्त या उपदेश कथायें आती हैं। इस श्रेणी की कथाओं के सभी पात्र प्राय: मनुष्य ही होते हैं और घटनाओं में किसी उपदेश या सिद्धान्त का समर्थन रहता है। दृष्टान्त कथाओं में किसी उपदेश या सिद्धान्त का समर्थन रहता है। हरिभद्र की इन दृष्टान्त कथाओं में कथा वस्तु का स्थान मुख्य है। उद्योतनसूरिकृत कुवलयमाला कहा प्राकृत साहित्य में अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। आठवीं शताब्दी के सामाजिक-जीवन का यथार्थ चित्र उद्योतन सूरि ने प्रस्तुत किया है। श्रौत स्मार्त वर्ण व्यवस्था उस समय व्यवहार में स्वीकृति नहीं थी। ब्राहमणों की श्रेष्ठता होने पर भी उनकी क्रियाएं शिथिल हो रही थीं। ___शूद्र आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने से प्रगति कर रहे थे। क्षत्रियों के लिए ठाकुर शब्द प्रयुक्त होने लगा था। जातियों का विभाजन हिन्दू जैन आदि धर्मों के आधार पर न होकर (206)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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