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________________ प्राकृतिक शक्तियों से सम्पन्न हो जाते थे । धम्मिल हिण्डी में इस प्रकार का वर्णन है कि किस तरह “आयम्बिल” ने छ: मास तक “निदान” करके, वर्तमान जीवन में ही अपनी सांसारिक वास की पूर्ति की सिद्धि प्राप्त किया। कहानी में कहानी का चित्रण वासुदेव हिण्डी में स्ष्ट है। वासुदेव हिण्डी के वृन्तान्तों में कर्म सिद्धान्त (कम्म) को प्रकाशित करने के लिये पूर्व जन्म में बहुत से लोगों के जीवन वृन्तान्त पाये जाते हैं।35 गुणाढच की वृहत्कथा की भांति इसमें श्रृंगार कथा की प्रमुखता होने पर भी बीच-बीच में धर्म का उपदेश दिया गया है। नरवाहन दत्त का विवाह जिस कन्या से होता है, उसी के नाम से लंभक है ।36 भाषा प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है जिसकी तुलना चूर्णी ग्रन्थों से की जाती है, देशी शब्दों के भी प्रयोग हुए हैं।37 “दिस्सहे”, “गच्छीय” “वहाए” “पिव” गेण्हेप्पि आदि रूप यहां मिलते हैं। नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार इस कथा में निम्न विशेषताएं है : 1. लोककथा के समस्त तत्वों की सुन्दर विवेचना है। 2. मनोरंजन के पूरे तत्व विद्यमान हैं। 3. अदभुत कन्याओं और उनके साहसी प्रेमियों, राजाओं और सार्थवाहों के षड़यन्त्र, राजतंत्र, छल-कपट हास्य और युद्धों, पिशाचों एवं पशु-पक्षियों की गढ़ी हुई कथाओं का ऐसा सुन्दर कथा-जाल है कि पाठक मनोरंजन कुतूहल और ज्ञानवर्धन के साथ सम्यक् बोध भी प्राप्त कर सकता है। 4. सरल और अकृत्रिम रूप में आकर्षक और सुन्दर शैली द्वारा कथाओं को प्रस्तुत किया गाया है। 5. प्रेम के स्वस्थ चित्र भी उपलब्ध हैं। ... 6. कथा में रस बनाये रखने के लिए परिमिति और संतुलित शब्दों का प्रयोग किया गया है। (15)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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