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________________ के मोर हर्षित होकर नाचने लगते थे105 उद्द्योतन ने यन्त्रशिल्प के सम्बन्ध में कोई विवरण नहीं दिया है। अन्य सन्दर्भो के आधार पर उनके इन तीन उल्लेखों को स्पष्ट किया जा सकता विनीता नगरी में यन्त्रधासगृह में यन्त्रजल घर की रचना की गयी थी। यन्त्रधारा गृह में मायामेघ या यन्त्रजल घर का निर्माण प्राचीन वस्तुकला का एक अभिन्न अंग था। महाकवि बाण ने कादम्बरी में मायामेघ का सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किया है बालकों की पंक्ति के मुखों से निकली हुई सहस्र धाराएं बनावटी मेघमाला का दृश्य उपस्थित कर रही थी।106 जिन सेन ने आदिपुराण107 में धारागृह में गिरती हुई धाराओं से घनागम का दृश्य उपस्थित किया है-धारागृ हेसु निपतद्धाराबद्ध घनागमें। सोमदेव ने यन्त्रजल भर के झरने में स्थलकमिलिनी की क्यारी सींचने का उल्लेख किया है ।108 भोज ने शाही घरानों के लिए जिस प्रबर्षण नामक वारिगृह का उल्लेख किया है उसमें आठ प्रकार के मेघों की रचना की जाती थी।109 हेमचन्द्र ने यन्त्रधारागृह के चारों ओर उठते हुए जलौध का वर्णन किया है ।110 इस तरह ज्ञात होता है कि यन्त्रजल द्वारा मायामेघ बनाने का प्रचलन 6-7 वीं शदी से 12वीं सदी तक बराबर बना रहा। न केवल यन्त्रधारागृह में अपितु भवन के अलंकरणों में भी मायामेघ बनाने की प्रथा गुप्तयुग से मौर्ययुग तक बनी रही।111 उद्द्योतन ने यन्त्रशकुन का उल्लेख वास भवन सज्जा के सन्दर्भ में किया है। अत: कहा नहीं जा सकता कि यन्त्रधारागृह से इस यन्त्रशकुन का क्या सम्बन्ध था? सम्भवत: यह वासभवन का ही कोई अलंकरण विशेष रहा हो, जो पक्षी के आकार का बना रहा होगा तथा जिसे नियोजित कर देने पर मधुर-संलाप होने लगता होगा। वासभवन में यन्त्रशिल्पों को रखे-जाने की प्राचीन परम्परा थी। सोमदेव ने यशोमती के भवन के यन्त्रपर्यक और यन्त्र-पुत्तलिकाओं का वर्णन किया है, जिनके यान्त्रिक विधान का परिचय गोकुल चन्द्र जैन में दिया है। ( 191)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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