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________________ से प्राप्त जीवंतस्वामी की दो गुप्तयुगीन कांस्य प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया है ! इन प्रतिमाओं में जीवंतस्वामी को कायोत्सर्ग मुद्रा में और वस्त्राभूषणों से सज्जित दर्शाया गया है। पहली मूर्ति लगभग पांचवी शती ई. की है और दूसरी लेख युक्त मूर्ति लगभग छवः शती ई. की है। दूसरी मूर्ति के लेख में 'जीवंतसामी' उत्कीर्ण है।49 पूर्व मध्य युग में श्वोताम्बर स्थलों पर अनेक ऐसी देवियों की भी मुर्तियाँ दृष्टिगत होती हैं, जिनका जैन परम्परा में अनुल्लेख है। इनमें हिन्दू शिवा और जैन सर्वानुभूति (या कुवेर) के लक्षणों के प्रभाव वाली देवियों की मूर्तियाँ सबसे अधिक है। जैन युगलों राम-सीता तथा रोहिणी, मनोवेगा, गौरी गांधारी यक्षियों और गरुड़ यक्ष की मूर्तियाँ केवल दिगम्बर स्थलों से ही मिली हैं। दिगम्बर स्थलों से परम्परा विरुद्ध और परम्परा में अवर्णित दोनों प्रकार की कुछ मूर्तियाँ मिली है। द्वितीर्थी और तितीर्थी जिन मूर्तियों का अंकन और दो उदाहरणों में त्रितीर्थी मूर्तियों में सरस्वती और बहुबली का अंकन, बहुबली एवं अंबिका की दो मूर्तियों में यक्षयक्षी का निरूपण तथा ऋषभनाथ की कुछ मूर्तियों में पारम्परिक यक्ष-यक्षी, गोमुख चक्रेश्वरी, के साथ ही अम्बिका, लक्ष्मी, सरस्वती, आदि का अंकन इस कोटि के कुछ प्रमुख उदाहरण है। इस वर्ग की मूर्तियाँ मुख्यत: देवगढ़ एवं खजुराहों से मिली है। श्वेताम्बर और दिगम्बर स्थलों की शिल्पसामग्री के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पुरुष देवताओं की मूर्तियाँ देवियों की तुलना में नगण्य हैं। जैन कला में देवियों की विशेष लोकप्रियता तांत्रिक प्रभाव का परिणाम हो सकती है। जैन परमम्परा पर तान्त्रिक प्रभाव के अध्ययन की दृष्टि से कतिपय सन्दर्भो की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करना उपयुक्त होगा। खुजराहों के पाश्र्वनाय मन्दिर (950-60 ई.) की भित्ति पर चारों तरफ शक्तियों के साथ आलिंगन मुद्रा में देवयुगलों की कई मूर्तियाँ हैं। इनमें शिव, विष्णु, ब्रह्म, अग्नि कुबेर, राम, बलराम आदि की शक्ति सहित मूर्तियाँ हैं जो स्पष्टत: हिन्दू प्रभाव दर्शाती हैं। इसी मन्दिर के उत्तरी और दक्षिणी शिखर पर कामक्रिया में रत दो युगल भी आमूर्तित हैं। काम क्रिया से सम्बन्धित या अलिंगन मुद्रा में साधुओं के अंकन भी देवगण के जैन मन्दिरों के प्रवेश द्वारों पर उपलब्ध हैं। उपयुक्त दिगम्बर स्थलों के अतिरिक्त ( 186)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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