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________________ ब्रम्हासत्र में उनके सिद्धान्तों का वर्णन आया है। इन दोनों में कपाट गोदाम में पहले हुए है, क्यों कि वैशेषिक दर्शन न्याय दर्शन की अपेक्षा अधिक प्राचीन समय का है। __ वैशेषिक सूत्रों की संख्या तीन सौ सत्तर है, जो दस अध्यायों में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय मे दो आन्हिक में हैं। प्रथम अध्याय के प्रथम आन्हिक में द्रव्य, गुण तथा कर्म के लक्षण तथा विभाग का और दूसरे में ‘सामान्य' का दूसरे तथा तीसरे अध्याय में नौ द्रव्यों का, चौथे अध्याय के प्रथम आहिक में परमाणु वाद का तथा द्वितीय में अनित्म द्रव्य विभाग का, पाँचमें अध्याय में कर्मका, छठे अध्याय में वेद प्रमाण्य के विचार के बाद धर्म-अधर्म का, सातवें तथा आठवें अध्याय में कतिपय गुणों का , नवें अध्याय में आभाव तथा ज्ञान का और दसवें में सुख-दुख विभेद तथा विविध कारणों का वर्णन किया गया है। वैशेषिक का अर्थ है पदार्थों के भेदों का बोधकः। पदार्थ जो प्रतिति से सिद्ध हो उसे कहते है। वैशेषिक दर्शन में हेय, हेय-हेतु, हान, और हानोपाय-इन चारों प्रतिपाद्य विषयों के समझने के लिए छ: पदार्थ 1-द्रव्य, 2-गुण, 3-कर्म, 4-सामान्य, 5-विशेष और 6-समवायका का निरुपण किया गया है तथा उसके सामान्य धर्म और विशेष धर्म के तत्व ज्ञान से निःश्रेयस अर्थात् मोक्ष बतलाया गया है। यथा-धर्म विशेषप्रसूताद् द्रव्यगुण कर्म सामान्य विशेषमवायाना पदार्थानां साधर्म्य वैधाम्यां तत्वज्ञानान्निः श्रेयसम्। 442 7 धर्म विशेष से उत्पन्न हुआ जो द्रव्य, गुण कर्म, सामान्य विशेष औ समवाय (इतने) पदार्थों का साधर्म्य और वैधर्म्य से तत्वज्ञान, उससे मोक्ष होता है।' इन पदार्थों में केवल धर्मी तो द्रव्य है, अन्य पाँच पदार्थ धर्म हैं । अर्थात गुण और कर्म द्रव्य के धर्म हैं। सामान्य और विशेष द्रव्य, गुण और कर्म तीनों के धर्म हैं। और समवाय पाँचो का धर्म है। इन छ: में से पहले तीन द्रव्य गुण और कर्म मुख्य पदार्थ है; क्योंकि इन्ही से अर्थ-क्रिया (प्रयोजन) सिद्ध होती है, और यही धर्म अधर्म के निमित्त होते हैं। शेष तीन (154)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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