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________________ “सोऊण लोइयाणं णरवाहन इन्तादीणं कहाओ कमियाओ लोगों एगंतेण काम कहासु रज्जंति। सोग्गइपह देसियं पुण धम्मं सोंउ पि नेच्छति य जरपिन्तवस कडुप मुहो इव गुल सक्कर खंड मच्छं-डियाइसु विपरी परिणामों । धम्मत्थकामपाण यमूलं धम्मों, तम्मि या मंदतरो जणो, " तं जह णाम कोई वेज्यो आउर अभयउसह- पाणपरंमुहं ओसढमिति उव्विलयं मणोमिलसिय-पाणवव एसेण उसहं तं पज्जेति । "काम कहा रतहितपस्स पणस्स सिंगार कहा वसेण धम्मं चेव परि कहेमि25" | “नरवाहन दत्त आदि लौकिक काम-कथायें सुनकर लोग एकांत में काम कथाओं का आनन्द लेते थे। ज्वरपित्त से यदि किसी रोगी का मुंह कडुआ हो जाये तो जैसे गुड़ शक्कर, खाँड़ मत्स्यंडिका (बूरा) आदि भी कड़वी लगती है, वैसे ही सुगति को ले जाने वाली धर्म को सुनने की लोग इच्छा नहीं करते। धर्म, अर्थ और काम से ही सुख की प्राप्ति होती है, तथा धर्म, अर्थ और काम का मूल है धर्म और इसमें लोग मंदतर रहते है । अमृत औषध को पीने की इच्छा न करने वाले किसी रोगी को जैसे कोई वैद्य मनोभिलाषित वस्तु देने के बहाने उसे अपनी औषधि भी देता है, उसी प्रकार जिन लोगों का हृदय काम कथा के श्रवण करने में संलग्न है, उन्हें श्रृंगार कथा के बहाने मैं अपनी इस धर्म कथा का श्रवण कराता हूँ ।" जैन विचारकों और चिन्तकों ने आध्यात्मिक ग्रंथों में श्रृंगार रस से ओत-प्रोत प्रेमाख्यानों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया एवं मदन उत्सवों के वर्णन संयोजित किये इन उत्सवों के अवसरों पर युवक कुमारियों को देखकर अपने आप को भूल कर कामज्वर से ग्रस्त हो जाता ( 10 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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