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________________ से। इन पाँच मागों से क्रमश: पाँच प्रकार की गति होती है:-निरय, तिर्यक, मनुष्य देव और सिद्ध। यह विचारणीय है कि उपनिषदों में भी कुछ ऐसी ही धारणाएँ मिलती हैं333 संसार से मुक्ति के लिए अपूर्व कर्म के आस्रव का निरोध और पूर्व कर्म का अपसारण आवश्यक है। इनमें पहली प्रक्रिया ‘संवर' कहलाती है और दूसरी 'निर्जरा' । 'संवर' आध्यात्मिक जीवन का पूर्वांग है, निर्जरा प्रधानांग। 'संवर' में मुख्यतया पाँच महाव्रत संगृहीत थे। सामञफल सूत्र में निगण्ठों के “चातुप्यामसंवर” का उल्लेख है। वस्तुत: चानुज्जाम अथवा ‘पाश्व के अनुयायियों का संवर था। महावीर ने चतुर्विध संवर को पच्चविध किया। निर्जरा से तप अथवा शरीर को क्लेश देने की प्रक्रिया अभिहित होती है। जैनों की तपस्या का अतिशय सर्व-विदित है। स्वयं महावीर की कृच्छ-चर्या इस विषय में आदर्श के रूप में प्रतिशिष्ठित है।334 लाट वज्ज और सुम्ह से वे 13 वर्ष से अधिक बिना आवास के घूमते रहे । नहाना, मुँह धोना, खुजलाना आदि उन्होंने छोड़ दिया मौन, एकान्त, प्रजागर, उपवास, शान्ति, निरन्तर ध्यान आदि का असाधारण अभ्यास किया। उत्तरज्झयण में तप के पाँच आध्यात्मिक और पाँच बाह्य भेद बताये गये हैं ।335 अनशन, अवमौदर्य, भिक्षाचर्या, रस परित्याग, कायक्लेश और सन्तीरणा, ये पाँच भेद बाह्य तप के हैं और प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्यवसर्ग ये पाँच भेद आंतरिक तप के हैं। कर्म सिद्धान्त:-जैन कथाओं के अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रमाद चेष्टित कर्म की परिणति बड़ी ही दारुण होती है।336 पातज्ञलयोगदर्शन में तीन प्रकार के कर्मों के सम्बन्ध में व्याख्या की गयी है-“कर्माशुल्काकृष्णं योगिनस्त्रिविधामितरेषाम्"337 शुक्लकर्म उन कर्मों को कहते हैं, जिनका फल सुखभोग होता है और कृष्णकर्म उन कर्मों को कहते हैं, जो नरक आदि दुःखों के कारण हैं अर्थात् पुण्यकर्मों का नाम शुक्लकर्म है और पाप कर्मों का नाम कृष्ण कर्म है, सिद्ध योगी के कर्म किसी प्रकार का भी भोग देने वाले नहीं होते, क्योंकि उसका चित्त कर्म संस्कारों से शून्य होता है इसलिए उन कर्मो को अशुक्ल और अकृष्ण कहते हैं। योगी के अतिरिक्त साधारण मनुष्यों के कर्म तीन प्रकार के होते हैं-(1) शुक्ल ( 129 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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