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________________ ब्रह्मा:-भारतीय धार्मिक परम्परा में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता स्वीकार किया गया है। एक जैन कथा ग्रन्थ में एक स्थान पर उन्हें विधि246 बताया गया है। एक अन्य स्थान पर इन्हे प्रजापति कहा गया है ।247 प्रजापति को ही कला का अधिष्ठाता देव समझकर संसार का रचयिता कहा गया है ।248 समराइच्चकहा के ये उल्लेख ब्राह्मण धर्म का जैन धर्म पर प्रभाव दर्शित करते हैं। ब्रह्मा का प्राचीनतम इतिहास वैदिक काल का माना जा सकता है। तारापद भट्टाचार्य के अनुसार वैदिक संस्कृति ब्रह्मा के अलौकिक शक्ति का ही विकसित रूप है।249 उन्ही के अनुसार ब्रह्मा ही संसार, मानव, देव, राक्षस एवं सभी धर्मों के जन्मदाता कहे जाते हैं ।250 यद्यपि ऋग्वेद में 'प्रजापति सूक्त' का वर्णन प्राप्त होता है जिसे कुछ विद्वानो ने सृष्टि का रचयिता देव माना है। लेकिन प्रजापति को कही सवित्र और सोम के विशेषण के रूप में251 तो कही हिरण्यगर्भ के रूप252 उल्लिखित किया गया है। भट्टाचार्य के अनुसार वैदिक काल में ब्रहमा का नाम अज्ञात नहीं था। ऋग्वेद में ब्रह्मण स्पति253 को ब्रह्मा के रूप में प्रयोग किया गया है, यह ब्रह्मणस्पति पूर्व वैदिक कालीन ब्रह्मा का पर्यायवाची है। ब्रह्मा को एक ही परमसत्ता का पर्यायवाची कहा गया है; 'अविभक्तं च भुतेषु विभक्तमिव च स्थितम् ।254 भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णुच ॥ वह परमात्मा विभागरहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त सा स्थित प्रतीत होता है तथा वह जानने योग्य (परमात्मा विष्णु रूप से) भूतों का धारण पोषण करने वाला और रुद्ररूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्मा रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है। विष्णु:-जैन कथाओं में विष्णु पूजा प्रशस्ति तथा उनके स्वरूप आदि का वर्णन नहीं मिलता है फिर भी कही परमेश्वर-55 और कहीं नारायण के नाम से उनका उल्लेख प्राप्त होता है। पौराणिक हिन्दू धार्मिक परम्परा के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव), ये तीनों देवता ( 121)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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