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________________ पर भी लोग सन्यासी हो जाते थे। कानून के चंगुल से बचने के लिए भी लोग सन्यासी हो जाते थे। एक व्यवसायी ऋण के दुष्परिणामों से बचने के लिए सन्यासी हो गया।14 राजकुमार के सिर काटने का आदेश राजा ने दिया परन्तु बुद्धिमान मन्त्री ने सन्यास की दीक्षा दिलवाकर मृत्युदंड से उसे बचा लिया।45 दबाव पड़ने पर अनिच्छा से भी लोग सन्यासी हो जाते थे। वासुदेव हिण्डी में एक सन्दर्भ है कि एक भाई जो जैन सन्यासी हो गया था इस संकल्प के साथ घर लौटा कि वह अपने छोटे भाई को सन्यास की दीक्षा के लिए प्रेरित करेगा। छोटे भाई की उस समय शादी हो रही थी परन्तु परिवार के सदस्यों की इच्छा के विपरीत वह अपने बड़े भाई के स्वागत के लिये आगे बढ़ा। बड़ा भाई उसे मठ में ले गया। बड़े भाई ने असत्य भाषण दिया कि उसका छोटा भाई सन्यास की दीक्षा लेने के लिए उसके साथ आया है। यद्यपि छोटा भाई स्तब्ध हो गया परन्तु बड़े भाई की भावनाओं को ठेस बहुँचने नहीं दिया। बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात वह पुन: घर लौट आया और गृहस्थी के कार्यों को संभाल लिया। 46 एक दूसरे उदाहरण में, एक ब्राह्मण पत्नी की मृत्यु हो जाने पर अपने युवा-पुत्र के साथ जैन सन्यासी हो गया था।47 जैन संघ में प्रवेश की पूर्वापेक्षायें:-जैन संघ में प्रवेश के लिए जाति, सामाजिक स्थिति या लिंग का प्रतिबन्ध नहीं था।48 केवल एक औपचारिकता का पालन करना पड़ता था अर्थात् धर्मसंघ में प्रवेश के पूर्व सम्बन्धियों, माता-पिता और राजा की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य था। राजा से अनुमति प्राप्त करने के दो अभिप्राय थे। पभव एक चोर था इसलिए राजा की अनुमति प्राप्त करना उसके लिए अनिवार्य था। ऐसा इसलिए था कि कहीं धर्म संघ में दूषण न आ जाय। दूसरा कारण अनुमति प्राप्त करने का यह था कि राजा के सहयोग से धर्म संघ की दिनचर्या सुचारुरुप से चलायी जा सके। जैन संघ में प्रवेश की योग्यताएं:- वासुदेव हिण्डी के अनुसार धनमित्र नाम का श्रेष्ठी ने अपने नौ पुत्रों के साथ गृहस्थ आश्रम को त्याग दिया था। जिस समय उसने गृहस्थी को (99)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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