SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगल पाठ के साथ पूजा करता था । 30 जिन की पूजा गृह के अन्दर की जाती थी और शुभ अवसरों पर मन्दिर में भी पूजा का आयोजन होता था । -31 वासुदेव हिण्डी (द्वितीय खण्ड) में पूजा के सम्बन्ध में विशेष विवरण प्राप्त होत है । विनयभाव के साथ मन्दिर में 'जिन' की मूर्ति के समक्ष भक्त उपस्थित होते थे । राजपरिवार के भक्त प्रतिमा के समक्ष जाने के पूर्व अपने राज चिन्हो से रहित हो थे । छाता और चमर उनके साथ नही रहता था । 32 मन्दिर में पूजा के लिए जाते समय भक्त अपने साथ एक टोकरी में फूल और धूप रखते थे एवं दूसरी टोकरी में चंदन, कपूर और कस्तूरी तथा एक स्वर्ण कलश और रत्न जड़ित एक संदूक भी साथ ले जाते थे 33 | पूजाविधि को संक्षेप में, वायु द्वारा की गयी पूजा से समझा जा सकता है । सर्वप्रथम वासुदेव ने मोर के पंखे से पूजा सामग्री की सफाई की तत्पश्चात जल का छिड़काव पूजा सामग्री के ऊपर करके चंदन का लेप मूर्ति के ऊपर लगाया । एवं पुष्पहार प्रतिमा को पहनाया, धूप लजाया एवं बलि अर्पित किया तथा जल का छिड़काव कर पुष्प बिखेर दिये 34 । अन्त में प्रार्थना और पापों का पश्चाताप किया 35 इस बात का भी संदर्भ प्राप्त होता है कि सूर्योस्त होने पर जिन के मन्दिर में ढोल भी बजते थे 1 36 पूर्वजों की पूजा श्राद्ध के रूप में की जाती थी । श्राद्ध-कृत्य में भैंसे की बलि भी दी जाती थी और लोगों को भोज पर आमन्त्रित किया जाता था 136 गौटों को भोजन दिया जाता था । वार्षिक उत्सवों पर ब्राहम्मणों, दरिद्रों और साधुओं को दान दिया जाता था। इस प्रकार के उत्सव स्थानीय देवताओं के सम्मान में आयोजित किये जाते थे । ब्राह्मणों को ग्रहण लगने की तिथि पर दान दिया जाता था 138 राजसूय यज्ञ – राजा सगर और उनकी पत्नी ने राजसूय यज्ञ किया । धम्मिल ने तर्क प्रस्तुत किया कि शासन चलाते समय सगर ने पाप अर्जित किया है इसलिए पाप नष्ट सकरने के लिए राजसूय यज्ञ करना आवश्यक हो गया । (97)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy