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________________ [१३] धर्म यह केवल सामाजिक रूदि नहीं है, किन्तु पास्तिविक सत्य है। मोक्ष यह बाहिरी क्रियाकाण्ड पालनेसे प्राप्त ही होता । धर्म तथा मनुष्यमें कोई स्थायी भेद नहीं रह सकता । -स्व० कवि सम्राट् ग्वीन्द्रनाथ टैगोर । जिन्होंने मोह मायाको और मनको जीत लिया है ऐसे इनका खिताब "जिन" है, और ये तीर्थकर हैं . इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी। जो बात थी साफर थी। ये दुनियां के जबर्दस्त रिफार्मर जबर्दस्त उपकारी और बहे ऊंचे दर्जेके उपदेशक हो गुजरे हैं। यह इन्सानी व मजा यो बहुत दूर थे, इ. में वगग्य था, इनमें धर्मका कमाल था। __-श्रीयुत् शिवलाल जी मन, अनेक पत्रों के (साधु, तत्वदर्शी, मार्तण्ड, सन्तदश भाद पत्र) 41.2 , नधा अनेकों अन्यों के ( विचार कर द्रुम, कश्या धर्म आदि ग्रंथ . चला, नेर, अशोके (विष्णुपुराण आदि ) अनुवादक प्राचीन कालम दिायर ऋषि ऋषभदेव “ अहिंसा परमोधर्मः " यह शिक्षा देते थे। उनकी शिक्षाने देव मनुष्य सौर इतर प्राणियों के अनेक उपकार किये हैं। -डॉ. राजेन्द्रलाल मिश्र । चौदह मनुओं से पहिले ग्नु स्वयं के प्रपौत्र नाभिका पुत्र ऋषभदेव हुआ, जो दिगम्बर जैन सम्प्रदायका मादि प्रचारक था। इनके जन्मकालमें जगतकी बाल्यावस्था थी। ----भागवत स्कन्ध ५, म०२ सूत्र ६।
SR No.010260
Book TitleJain Dharm par Lokmat
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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