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________________ ८६ जैनधर्म की उदारता (२५) गुजरात के देवपुर में दिगम्बर मुनि जीवनन्दि संघ सहित गये थे। वहां जैन नहीं थे इसलिये वे शिवालय में ठहरे और नये जैन बनाकर उनसे आहार लिया। __इन उदाहरणों से ज्ञात होगा कि जैनधर्म कितना उदार है। इसने कैसी कैसी जंगली जातियों तक को अपना कर जिनधर्मी बनाया, कैसे कैसे पतितों को पावन किया और कैसे कैसे दृष्टामात्रओं को उपदेश देकर जैन मार्ग पर लगा दिया। सच्चा मानव धर्म तो यही है । जिस धर्म में ऐसे लोगों को पचाने की शक्ति नहीं है उस मुर्दा धर्म से लाभ ही क्या है ? दुःख है कि वर्तमान जैन समाज अपने उदार धर्म को मुर्दा वनाती जा रही है। क्या, इन उदाहरणों से समाज की आंखे खुलेंगी? और वह अपने कर्तव्य को समझेगी ? ___ कथा ग्रंथों में तो ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे जिनसे जैन धर्म की उदारता का पता भली भांति लगाया जा सकता है। कुछ पुण्याश्रव कथाकोश से प्रगट किये जाते हैं। (१) पूर्णभद्र आर मानभद्र ने एक कूकरी और एक चाण्डाल को उपदेश देकर सन्यास युक्त पंचाणुव्रत ग्रहण कराये । चाण्डाल , सन्यासमरण करके सोलवे स्वर्गमें गया और नन्दीश्वर नामक महर्द्धिक देव हुआ.और कूकरी मरकर राजपुत्री हुई। (कथा नं०६-७) (२) दो माली की कन्यायें प्रतिदिन जिन मंदिर की देहली पर फूल चढ़ाती थीं उसके पुण्य से ये देवियां हुई। (३) अर्जुन चाण्डाल उपास लेकर और सन्यास ग्रहण कर गुफा में जा बैठा। चाण्डाल होकर भी उसने केवली की वन्दना की थी। पहले वह महान हिंसक था । सन्यास मरण करके वह देव हुभा (कथा नं०८)
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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