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________________ जैनधर्म की उदारता मनुष्यों तक को जैनी बनाना बन्द नहीं है । मुसलमान जो म्लेच., समझ जाते हैं वह भी जैन जातियों में मिला लिये जाते थे। (१४) पं. दौलतरामजी ने आदिपुराण की मापा बनिका में स्पष्ट लिखा है कि "वे नव दीक्षित तुम सरीखे सम्यग्दृष्टीन के अलाभ विपे मिथ्याष्टीन सो सम्बन्ध होय है इस तरह कहें और वे श्रावक इसको वर्ण लाभ क्रिया से युक्त करें अर्थात् णमोकार मंत्र पढ़ाकर आज्ञा करें कि पुत्र पुत्रीन का संबध यासू किया जाय उनकी आज्ञा ते वर्णलाभ क्रिया को पायकर उनके समान होय !" इससे स्पष्ट सिद्ध है कि अजैनों को जैन बनाकर उनके साथ रोटी व्यवहार करना शात्र सम्मत है। फिर आज जो जैनी जैनों के साथ रोटी बेटी व्यवहार करना अनुचित कहते हैं, उन्हें शास्त्राज्ञा पालक कैसे कहा जा सकता है। (१५) पात्रकेशरी अजैन ब्राह्मण थे। बाद में वे जैन होकर दिगम्बर मुनि हुये । जैनों ने उन्हें पूजा और गुरू माना । (आराधना कथाकोश कथा नं०१) (१६) अकलंकस्वामी की कथा से मालूम होता है कि हिमशी- . तल राजा अपनी प्रजा सहित जैनधर्मी होगया था। (कथा नं० २) (१७) चोरों का सरदार सूरदत्त मुनि होकर मोक्ष गया। और जैनों का पूज्य परमात्मा वन गया। (कथा नं०१४) (१८) जैन सम्राट चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की कन्या से विवाह किया था। यह इतिहास सिद्ध है। फिर भी जाति या धर्म संबंधी कोई बाधा नहीं आई। (१९) अनेक इण्डो-ग्रीक लोग जैनी हुये थे। यह वात बौद्ध ग्रन्थ 'मिलिन्दपन्ह' से प्रगट है। (२०) कुशानकालीन मथुरा वाले जैन मन्दिर व जैन मूर्तियों
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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