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________________ Posmm प्रायश्चित्त मार्ग उदारता साथ अभी भी कई जगह विवाह सम्बन्ध होता है। यह पांडे लोग ब्राह्मण हैं और पद्मावती पुरवालोंमें विवाह संस्कारादि कराते थे। वादमें इनका भी परस्पर बेटी व्यवहार चालू हो गया। ६-करीब १५० वर्ष पूर्व जव बीजावर्गी जातिके लोगोंने खंडेलवालोंके समागमसे जैन धर्म धारण कर लिया तब जैनेतर बीजावर्गियोंने उनका बहिष्कार कर दिया और बेटीव्यवहारकी कठिनता दिखाई देने लगो। तब जैन बीजावर्गी लोग घबड़ाने लगे। उस समय दूरदर्शी खंडेलवालोंने उन्हें शान्त्वना देते हुये कहा कि "जिसे धर्म वन्धु कहते हैं उसे जाति बन्धुकहने में हमें कुछ भी संकोच नहीं है। आजहीसे हम तुम्हें अपनी जातिके गर्भ में डालकर एक रूप किये देते हैं।" इस प्रकार खण्डेलवालोंने वीजावर्गियोंको मिलाकर बेटी व्यवहार चालू कर दिया। (स्याद्वादकेशरी गुरु गोपालदासजी वरयाद्वारा संपादित जैनमित्र वर्प६अङ्क १पृष्ठ१२ का एक अंश ।) ७-जोधपुरके पाससे सम्बत् ६०० का एक शिलालेख मिला है। जिससे प्रगट है कि एक सरदारने जैन मन्दिर बनवाया था । उसका पिता क्षत्रिय और माता ब्राह्मणी थी। -राजा अमोघवर्षने अपनी कन्या विजातीय राजा राजमल्ल सप्तवाधको विवाही थी। -आवके मन्दिरका सम्बत् १२६७का शिला लेख है । उसमें पोरवाड़ और मोढ़ जातियोंके परस्पर उपजाति विवाह करनेका उल्लेख है। (प्राचीन जैन लेख संग्रह) ___नोट-वैवाहिक उदारता के संबंध में विशेष जानने के लिये लेखक की दूसरी पुस्तक "विजातीय विवाह मीमांसा" पढ़ना चाहिये।
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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