SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पं० परमेष्ठीदासजी जैन न्यायतीर्थ लिखित यह पुस्तकें आज ही मंगाकर पढिये । (१) चर्चासत्र समीक्षा -- इस में गोचर पंथी मन्य 'चर्चा सागर की खूब पोल खोली गई है । और रामही पंडितो की युक्तियों की धनी २ उड़ाई गई है । इम समीक्षा के द्वारा जैन साहित्य पर लगा हुबा कलङ्क धोया गया है पृष्ठ ३०० मूल्य ॥ ) A (२) दान विचार समीक्षा - तुल्लक देपी : ज्ञानसागर द्वारा लिखी गई अज्ञानपूर्ण पुस्तक 'दानविचार' की यह युक्ति नमक और चुद्धिपूर्ण समीक्षा है। धर्म के नाम पर रचे गये, मलीन साहित्य का भान कराने वालों और इस मैल से दूषित हृदयों को शुद्ध कराने वाली है । पृष्ठ १६५ मूल्य । है । : (३) परमेष्ठी पद्यावली इसमें महावीर जयन्ती, श्रुतपंचमी, रक्षा बन्धन, पपरण पर्व दीपावली, होली, आदि की तथा सामाजिक धार्मिक, राष्ट्रीय एवं युवकों में जीवन डाल देने वाली करीव ५० कविताओं का संग्रह है । मूल्य =) i : (४) दस्साओं का पूजाधिकार - मूल्य (५) विजातीय विवाह मीमांसा- इसमें अनेक शास्त्रीय प्रमाण, बुद्धिगम्य तर्क और सैकड़ों दृप्रान्त देकर यह सिद्ध किया. है कि विजातीय विवाह आगम और युक्ति संगत हैं। तथा जातियों: का इतिहास और उनकी आधुनिकता भी सिद्ध की गई ""," पछ संख्या १७५ मुल्य || =) पता- जौहरीमल जैन सर्राफ, बड़ा दरीबा देहली।",
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy