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________________ जनधर्म की उदारता wowwwwwwwwwwwwww to wr wowwwwwwro -www in है। क्योंकि श्रावक के सिर पर कोई मणि तो लगा नहीं रहता। कितनी अच्छी उदारता है ? कैसा सुन्दर और स्पष्ट कथन है ? कैसी बढ़िया उक्ति है ? जैनियो ! इससे कुछ सीखो और अपनी जैनधर्म की उदारता का उपयोग करो। उपसंहार जैनधर्म की उदारता के सम्बन्ध में तो जितना लिखा जाय थोड़ा है । जैनधर्म सभी बातों में उदार है। मैं जैन हूँ इसलिये नहीं किन्तु सत्य को सामने रखकर यह बात दावे के साथ कह सकता हूं कि "जिननी उदारता जैनधर्म में पाई जाती है उतनी जगत के किसी भी धर्म में नहीं मिल सकती"। यह बात दूसरी है कि आज जैनसमाज उससे विमुख होकर जैनधर्म को कलङ्कित कर रहा है। इस छोटी सी पुस्तक के कुछ प्रकरणों से जैनधर्म की उदारता का विचार किया जा सकता है। आज भी जैन समाज में कुछ ऐसे साधु पुल्पों का अस्तित्व है जो जैनधर्म की उदारता को पुनः अमल में लाने का प्रयत्न करते हैं। दिमुनि श्रीसूर्थसागरजी महाराज के कुछ विचार इस सम्बन्ध में "पतित का उद्धार प्रकरण में लिखे गये हैं। उसके अतिरिक्त एक बार जब वे संघ सहित अलीगंज पधारे थे तब उनने एक जनेतर भाई के प्रश्नों का उत्तर जिन उदार भावों से दिया था उनका कुछ सार इस प्रकार है___"शुद्ध यदि श्रावकाचार पालता हो और सच्छूद्र हो तो उसके यहां साधु आहार भी ले सकता है। शूद्र ही नहीं चाण्डाल तक धर्म का पालन कर सकता है। जैनधर्म ब्राह्मण या बनियां का धर्म नहीं है, वह प्राणीमात्र का धर्म है। आजकल के वनियों ने उसे तालों में बन्द कर रखा है। सच्छद्र अवश्य पूजन करेगा। जिसे
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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