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________________ . परिशिष्ट (२)' उत्तराध्ययनसूत्र में 'केशि-गौतम-संवाद' नामका एक प्रकरण (२३ वा अध्ययन) है, जिसमें सबसे पहले पार्श्वनाथके शिष्य (तीर्थशिष्य) केशी स्वामीने महावीर-शिष्य गौतम गणघरसे दोनों तीर्थकरोंके शासनभेदका कुछ उल्लेख करते हुए उसका कारण दर्याप्त किया है और यहाँतक पूछा है कि धर्मकी इस द्विविध प्ररूपणा अथवा मतभेद पर क्या तुम्हें कुछ अविश्वास या संशय नहीं होता है ? तब गौतमस्वामीने उसका समाधान किया है। इस संवादके कुछ वाक्य (भावविजयगणीकी व्याख्यासहित ) इसप्रकार हैं: चाउज्जामो अजो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेणं, पासेण य महामुणी ॥ २३॥. व्याख्या-चतुर्यामो हिंसानृतस्तेयपरिग्रहोपरमात्मकतचतुष्करूपः, पंचशि-- क्षितः स एव मैथुनविरतिरूपपंचमहाव्रतान्वितः ॥ २३ ॥ एककज्जपवनाणं, विसेसे किं नु कारणं । धम्मे दुविहे मेहावी ! कहं विप्पच्चओ न ते १ ॥२४॥ व्याख्या:-'धम्मेति' इत्यं धर्मे साधुधर्मे द्विविधे हे मेधाविन् कथं विप्रत्ययः. अविश्वासो न ते तव ? तुल्ये हि सर्वज्ञत्वे किं कृतोऽयं मतभेदः ? इति ॥ २४ ॥ एवं तेनोक्ततओ केसि बुवंतं तु, गोअमो इणमव्यवी। पण्णा समिक्खए धम्म-तत्तं तत्तविणिच्छयं ॥२५॥ व्याख्या-'बुवंतं तुत्ति' ब्रुवन्तमेवाऽनेनादरातिशयमाह, प्रज्ञावुद्धिः समीक्ष्यते पश्यति, किं तदित्याह-'धम्म-तत्तंति' विन्दोलॊपे धर्मतत्त्वं धर्मपरमार्थ, तत्त्वानां जीवादीनां विनिश्चयो यस्मात्तत्तथा, अयं भावः न वाक्यश्रवणमात्रादेवार्थनिर्णय: स्यात्किन्तु प्रज्ञावशादेव ॥२५ ॥ ततश्च-. पुरिमा उज्जुजडा उ, वकजडा य पच्छिंमा । मज्झिमा उज्जुपण्णा उ; तेण धम्मे दुहा कए ॥ २६॥
SR No.010258
Book TitleJain Acharyo ka Shasan Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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