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________________ (e) त ही रोम रोम हरपावे ॥ आज० २॥ मा. निक निज हित हेत छवी लखि हरषि ह. रषि गुण गावे ॥ आज०३॥ १०८ पद-ठुमरी झंझोटी ॥ स्याम सुरत घन मूरत प्रभु की लागे म्हाने प्यारी जो॥टेका विश्वसेन नंदन जग बंदन पद पंकज पर वारी जी ॥ स्याम०१॥ कमठ दलन शिवत्रिय मन रंजन अचल ध्यान धरतारी जी ॥ स्याम०२॥ प्रभु छवि लखि शत कोटि पंचशत लज्जित मन महिं भारी जी ॥ स्याम० ३॥ जिन रबि चरण शरण मानिक नित पतित दुरित तमहारो जी॥ स्याम०४॥ १०९ पद-मंझोटी अब ते नं जिनमत पायो जगसार रे ॥टेक ॥ वालापन ते ने खेलि गमायो योबन बनिता लाररे ॥ अब० १॥ वृद्ध मये
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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