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________________ () मांहिं बिनसाइ । बाधा सहित हेतु बंधन को शुद्ध ज्ञान मनलाइ॥ भोरी० २॥ इन्द्रि य जनित इन्हें तूं भ्रमतें जानत है सुखदाइ। भ्रमतजि ज्ञानदृष्टि करि देखो यह पु. दल पर जाइ ॥ भोरी० ३॥ ये दुखमय तूंसु. 'खमय मानिक भेद विज्ञान कराइनिजानं द अनभव रस में छकि अन्य सवे छुटका. इ॥ भोरी०४॥ पद-राग पद।। चेतन यह बुधि कोन सयानी जिन मत रीति विपर्यय मानी॥ टेक ॥भूलि रहोनित कुलाचार में हित अनहित की परख न जानी । कुगुरादिक के पक्षपातकरि वन सनी नहिं यो जिनवानो ॥ चेत०१॥ बीतराग सर्वज्ञ देव छवि की बहुधा सराग विधि ठानी । प्रगट कुदेव क्षेत्र पालादिक
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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