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________________ (E) मोर मुबन्द कर कंकन तोरे गिरितन रथ फिरवायो रे बना॥ उग्र०॥रज मति नजि भवि सिद्ध निरंजन स्वात्म ब्रह्मरुचि ला. योरे बना ॥ उग्र०॥ भवि जन नारि जारि विधि गण शिव निय सां नहा लगायो रे बना उग्र०॥ शिव रमनी घर लखि क मा. निकमन वचनन शिर नायो रेबना। उग्र। ७८ पद-गग होरी झापी ॥ विनती सुनियो यदुगई तुम्हरे में शग्ने आई ॥ टेक ॥ छप्पन कौटि सजि व्याहन संग ले कृष्ण हली दोऊ भाई । अशरण पशु आनंदन लखिचित करुणा उपजाई। बहुत वैराग बढ़ाई ॥ बिन० १॥ समदवि जसे पिता छोड़ि छाड़ी शिव देवी माई। भुवि मंडल को राज छोड़ि के पगुअनि बंदि छुड़ाई ॥ फेरि रथ गिरि को जाई ॥ बिन०२॥ भूपण वसन डारि गिरिज
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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