SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ पद-राग झमोटी ॥ प्रभु थाकी छवो पे मैं बारी॥ प्रभुण्टेक॥ वीतराग विज्ञान भावमय पर्म शांति मद्रा धारी ॥ प्रभु० १॥ नाशा अग्र दृष्टि को धारें भविसुर नर मुनि गण मनहारी॥प्रभु० २॥ अनुभव रस झलकत मुख पुलकित मानो बचन कहत आनंदकारी ॥ प्रभु०३॥ धारि अनुराग विलोकत मानिक ते पावत पद अविकारी ॥ प्रभु०४॥ १५-पद दादरा कलांगहा में ॥ __ सुनि लीजो मेरी टेर कर्मनि ने मोहि घेरो ॥ टेक ॥ कर्म शत्र ने भव भव मांही दोनो है दुःख घनेरो ॥ सुनि० १॥ रत्नत्रय निज धन मेरो हरि करि लीनो मोहि चेरो ॥ सुनि० २॥ तुम हो दीनदयालु जगत गुरु मोतन क्यों नहीं हेरो ॥ सुनि० ३॥ शरण
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy