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________________ (१) चमकावने लगी । जिय० १॥ मिथ्यात्वनि. शि अंधियारी लगी रोग की झड़ियां। यह आयु धोती जाति ज्यों घटियाल की घडि.. यां ॥ दुर्गति विरुप सरिताजु बहायने लगी ॥ जिय०२॥ नर भव सुकुल सुशैली बड़े माग्यतें पाई। जिन वाणि पर्म औषधि नित सेबोरे भाई ॥ मानिक जरादों व्याधी विनसावने लगो। जिय०३॥ ३० पद-गग रेखता ॥ विज्ञान छटा कर्म मल बहावने लगी। वहारने लगी जीमन भावने लगी ॥विज्ञा० ॥टेका यह काल लब्धि पावस ऋतु आईहै अति जोर । दूसरे उर शुद्ध भाव बदरा उठे घोर ॥ त्रय कारण रूप चपला चमकाने लगी ॥ विज्ञा० १॥ जहां शाम्य शशि प्रकाशत भ्रम तिमिर जुनसिया । वैराग्य चलत पवन शांति उदक वरसिया ॥ परवस्तु
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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