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________________ (२) कहाईरे। सपरस आकृति नाम गंध लखि घिन उपजाईरे । नर्कयोग निर्दई खांय नर नीच कसाईरे।नाम लेत तजि देत असन उत्तम कुल भाईरे ॥ सन में मगन भाव यह भक्षण तजि अति दुखकारी। इन सातो. ॥२॥ [मदिरा] क्रमिकुल राशि कुवास जासु छूबत शुचिता जावे । नीच कुलीमद पान करत निजतन सुधि विसरावे॥भूमि माहि मुख फाडि पडत तहांश्वान मूत्र प्यावे। पुत्री मात बधू समलखि अनुचित ही वतलावे॥मोह भाव वारुणीतजोभजि निज स्वभाव भारी । इन सातो० ॥३॥ वेश्या। अशुचि खानि नित असत बानि बोलति तजि लज्यारे । धनहित प्रीति करत निरधन लखि तुरत ही तज्यारे ॥ मास खान मदपान करत किलविष जन रज्यारे । प्र
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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