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________________ (२०) है पुदगल मांहीं ॥१॥ रोगादिकतो देहात्रित हैं धन कुटुंब पर प्रगट दिखाहीं। शुभ अरु अशुभ उदय सुख दुखमें हर्प विपाद न उर उमगांहीं ॥ २॥ शुभ मय राग होत है ताको हेय गिनत निज परणति ना. हीं। कब निर बिकलप होइ दशा निज आपुन मांहिं आप निवसांहीं ॥ ॥ आपुन सम सब जीवन जानत वृप प्रभावलिखि अति हर्षाहीं । या कलि मांहिं अल्प हैं तिन पर मानिक मन वच तन वलि जांहीं ॥४॥ ____ २१ पद-राग ठुमरी देश में ॥ ___ अब मोहि जानि परो जग में जैन धर्म है सार ॥ अब० ॥ टेक ॥ जामें देव धर्म गुरु आगम तत्त्व कहो निरधार ॥ अव०॥ दोषावर्ण रहित जग ज्ञायक महादेव सुखकार । ज्ञान विरागी परिग्रह त्यागी सुगुरु स्वपर हितकार ॥ अव० २॥ मोह क्षाह
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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