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________________ (१८) १८ पद-गग मंझोटी ॥ आकुलता दुखदाई तजो भवि अकुलता दुखदाई हो ॥ टेक ॥ अनरथ मूल पाप की जननी मोहराय की जाई हो ॥ आ०१॥ अकुलता करि रावण प्रतिहरि पायो नर्क अघाई हो । नेणिक भूप धारि आकुलता दुर्गति गमन कराई हो॥ आ०२॥ आकुलता करि पांडव नरपति देश देश भटकाई हो। चक्री भरत धारि आकुलता मान भंग दुख पाई हो ॥ आ० ३॥ आकुल विना पुरुष निरधन ह सुखिया प्रगट दिखाई हो । आकुलता करि कोटीध्वज हू दुखी होय विललाई हो ॥ आ०४॥ पूजा आदि सर्वकारज में विधन करण वुध गाई हो।मानिक आकुलता विन मुनिवर निरआकुल पद पाई हो ॥ आ०५॥
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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