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________________ दूसरा अंक सूंड़ उनके सामने बढ़ायी तो कुमार को उसके क्रोध पर हँसी आ गई । उन्होंने विद्युत गति से उस सूंड़ पर पैर रख कर उसके मस्तक पर आसन जमा लिया। फिर पैरों से उसका गला दबा कर उसके कानों को न जाने किस तरह सहलाया कि जो हाथी भूकम्प की तरह धरती को हिला रहा था, वह पहाड़ की तरह अचल हो गया । सुमित्र : और सम्राट् ! उसी अवस्था में उसने अपनी सूंड़ उठा कर महावीर कुमार को झूमते हुए प्रणाम किया । सिद्धार्थ : धन्य है, मेरा कुमार वर्धमान ! (हर्ष से गद्गद् हो जाते हैं। ) विजय : तभी गजाध्यक्ष पीछे से दौड़ता हुआ आया । कुमार ने उसे हाथी सौंप दिया और वे हम लोगों के पास चले आये । मुमित्र : फिर हम लोग जैसे ही आपकी सेवा में आ रहे थे, एक वट-वृक्ष के तने से निकल कर एक भयंकर सर्प हम लोगों की ओर झपटा। हम लोग डर गये किन्तु कुमार निर्भीक होकर खड़े रहे। उन्होंने आगे बढ़ कर उसकी पूँछ पकड़ी और उसे घुमा कर दूर फेंक दिया । कुमार इतने तेजस्वी ज्ञात होते हैं, मम्राट् ! कि उनके सामने भयानक से भयानक जीव भी निर्जीव-सा हो जाता है । सिद्धार्थ : साधु ! यह सब भगवान् पार्श्वनाथ की कृपा है। उन्हीं की कृपा ने उन्हें इतना तेजस्वी बना दिया होगा । किन्तु इस समय कुमार वर्धमान कहाँ हैं ? विजय : हम तो समझते थे कि वे आपकी सेवा में आये होंगे । सिद्धार्थ : नहीं, वे अभी तक तो यहाँ नहीं आये । फिर वे इतने शालीन हैं कि अपने द्वारा किये गये कार्यों की न वे प्रशंसा करते हैं और न सुनना चाहते हैं। मैं तो स्वयं उनके सम्बन्ध में चिन्तित हूँ | ૪૨
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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