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________________ पहला अंक विजय : हाथी पागल हो गया है । वह आप पर भी आक्रमण कर देगा। वर्धमान : आक्रमण करे तो कर दे। मैं अकेला ही जाऊँगा। तुम लोग यहीं रुको। मेरा आदेश मान्य हो। (कुमार वर्धमान का शीघ्रता से प्रस्थान) विजय : (कुमार के जाने की दिशा में देखते हुए) कुमार अकेले ही चले गये। हम लोगों को आदेश दे दिया कि हम लोग यहीं रुकें । डर है, कहीं कोई अनिष्ट न हो। मुमित्र : कुमार का यह साम अनुचित है। पागल हाथी सामान्य व्यक्ति और राजकुमार में कोई अन्तर नहीं रखेगा । और कुमार उस हाथी को क्या देखेंगे, जब उनके सामने जीवों पर लक्ष्य लेने की बात ही. नहीं है। विजय : कुमार ने व्यर्थ ही हमें रोक दिया, नहीं तो आज बाण चलाने में मेरा कौशल देखते ! मुमित्र : मेरा लक्ष्य-बेध तो अचूक होता। आज तक मेरे बाणों ने लक्ष्य का केन्द्र ही देखा है, उसकी परिधि नहीं । विजय : यह तो मैं जानता हूँ किन्तु आश्चर्य है कि गजशाला में यह हाथी कसे छूट गया । क्या महावत उसे नहीं रोक सका? मुमित्र : महावत असावधान होगा, या प्रयत्न करने पर भी वह उसे नहीं रोक सका होगा । अब कुमार वर्धमान उसे जाकर रोकेंगे। विजय : वे कैसे रोकेंगे? धनुप-बाण का प्रयोग तो वे करेंगे नहीं । मुमित्र : (हंस कर) धनुष-बाण का प्रयोग क्यों करेंगे ? वे तो कोई मूक्ष्म वाण चलाएँग । स्थल बाण में जीव की हत्या होगी और जीव की हत्या मंमार की सबसे बड़ी हिमा है।
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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