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________________ कथा-सूब यशोदयायां सुतया यशोदया पवित्रया वीर विवाह मंगलं। अनेक कन्या परिवारया सहत्समीक्षतुं तुंग मनोरयं तदा। (हरिवंश पुराण, ६६-८) अतः वैराग्य की समस्त भावनाओं के कोड़ में भी मैंने महावीर वर्धमान के विवाह का उल्लेख कर दिया है। महावीर वर्धमान अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करते थे। उनकी आज्ञा टालना वे पाप समझते थे, इसलिए जब उन्होंने विवाह करने का आदेश दिया तो उसे महावीर अस्वीकार नहीं कर सके। उन्होंने विवाह किया अन्यथा वे संन्यास लेने के पक्ष में ही थे। श्री रिषभदास राँका लिखते हैं कि 'उनका वास्तविक जीवन तो गृह-त्याग के बाद ही शुरू होता है, इसलिए विवाह करने या न करने की बात का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।' (भगवान महावीर और उनका साधना-मागं, पृष्ठ ७) वे विवाह के उपरान्त भी संन्यास लेना चाहते थे किन्तु माता-पिता को कष्ट देना वे हिंसा का एक रूप मानते थे, इसलिए वे दस वर्षों तक गृहस्थाश्रम में रहे। महावीर की २८ वर्ष की अवस्था में उनके माता-पिता का देहान्त हो गया, इमलिए वे अव संन्यास लेने में स्वतंत्र थे। उन्होंने अपने भाई नन्दिवर्धन के समक्ष संन्याम ले लेने का प्रस्ताव रखा किन्तु उन्होंने अनमति नहीं दी। दो वर्षों तक वे किसी प्रकार रुके रहे। जब उनकी पत्नी यशोदा कुछ समय के लिए अपने पिता के घर चली गई थीं, तभी महावीर के मन में वैगग्य की भावना प्रवल हो उठी और उन्होंने गृह त्याग कर मंन्याम ले लिया । यह दिन मागंगीर्ष कृष्ण १० का था। ___ मंन्यास में महावीर को घोर उपमर्ग महन करने पड़े। किन्तु उनके मन में मंयम और अहिमा के भाव इननी दृढ़ना मे जमे थे कि वे लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए । बारह वर्षों तक मन्याम-जीवन में उन्होंने भयंकर कष्ट गहे । किमी ग्राम में पहुंचने पर उनके त्याग और तप को न समझने वाले लोग उन पर प्रहार करते किन्तु वे इमका कोई प्रतिकार न करते । मर्प और विप-जन्तुओं का उपद्रव, भयानक शीत, और प्रवल ऊप्मा उन्हें कठोर साधना में नहीं डिगा मकी। वे स्वयं कष्ट सहन करते, दूसरों को किसी प्रकार का कंग पहुँचाना उन्हें स्वीकार नहीं था। वे
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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