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________________ स्मृति-बिन्दु प्रिय भाई भागचन्द जैन, तुम्हें याद होगा जब हम लोग नरसिंहपुर (म०प्र०) के मिशन हाई स्कूल में नाइन्थ क्लास में पढ़ते थे, तब कंदेली में बने हुए दिगम्बर जैन मन्दिर जाया करते थे। तुम वर्धमान महावीर जी के चरणों में फूल चढ़ाते हुए कुछ कहते जाते थे और मैं महावीर स्वामी के सौम्य मुख-मंडल की ओर टकटकी लगा कर देखता रहता था। कुछ समझता तो था नहीं, बस महावीर स्वामी के प्रति अपनी श्रद्धा अवश्य समर्पित करता था। जब कालेज में पहुंचा तो कुछ समझने योग्य हुआ। तव नरसिंहपुर में श्री जमुना प्रसाद जैन सब-जज होकर आये थे । गर्मी की छुट्टियों में मैं नरसिंहपुर जाता और सब-जज साहब के साथ टेनिस खेलता । थक जाने के बाद उन्हीं के साथ दिगम्बर जैन मन्दिर जाता। हम लोग महावीर स्वामी को प्रणाम करते । वहाँ से निकलने के बाद वे मुझे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के तत्त्व समझाते और वर्धमान महावीर को विश्व का महामानव निरूपित करते । सुबह जब तुम पूजा कर लेते थे तब मैं तुम्हारे मामने श्री जमुना प्रमाद जैन जी से सुनी हुई बातें दुहराता था। ___ इलाहाबाद यूनीवर्सिटी में आया और साथ ही स्वर्गीय राजर्षि पुरुषोत्तम दाम टंडन के सम्पर्क में । उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के परीक्षा-मंत्री का कार्य-भार मुझे सौंपा। उस समय श्री रामचन्द्र शुक्ल के 'हिन्दी साहित्य का इतिहाम' को छोड़ कर हिन्दी में विद्यार्थियों के लिए कोई आलोचनात्मक इतिहास नहीं था। उन्होंने मुझे आदेश दिया कि मैं 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' लिखू । मैंने उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर हिन्दी साहित्य के इतिहास का गहराई से अध्ययन करना आरंभ किया । अध्ययन करते हा मझे कुतूहल और आश्चर्य हुआ कि हिन्दी साहित्य के आदि काल का ७५ प्रतिशत साहित्य जैन आचार्यों, मुनियों और कवियों द्वारा परवर्ती अपभ्रंश और पुरानी हिन्दी में लिखा गया है । फलतः, मेरी
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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