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________________ पांच अंक परिक्रमा करती है। ओंटों में मंत्र पढ़ती है । ओंठों से हथेलो लगा कर उनके ऊपर 'छु' करके सांस छोड़ती है । ) देखता हूँ. अब ये कैगे छुटते हैं। मैंने कामदेव का मंत्र जो पढ़ दिया है। प्रिया : तिलोत्तमा ! तू तो कामदेव की उपामिका है। तेरा मत्र कभी झट नहीं हो सकता । अब महात्मा जी नहीं मकने । रभा : अरे, छूटने की बात क्या: : तपम्बी तो बड़े कृपालु होते है । वे कम हैं कि हमें आलिगन के नि: उन्मूक दम कर भी इनके हृदय में प्रम की भावना उदय नहीं होती। (वर्धमान ध्यानावस्थित हैं। मुप्रिया : सुनते हैं, म ता का हृदय ना नवनीन के समान होता है । उग ना हमारी दशा देख कर पिघलना चाहिए । तिलोनमा : अरे. इनका हृदय नवनीत के ममान नहीं है । इनका हदय ना एक पापाण-नुड है जो किमी वन्य की मीढ़ी पर पड़ा रहता। (वर्धमान ध्यानावस्थित है।) (सुप्रिया, रंभा और तिलोत्तमा निराश हो जाती हैं।) मृप्रिया : चलो. वहिनी ! य वास्तव में मन:। रभा : कहाँ हम महागज नन्दिनना प्रेरणा सेट माहित करत आई थी, और कहाँ हम ग्वयं नर बंगग्य माहित हो रही है। तिलोतमा : ये मन्च नाम्बी ज्ञात हात है। जब माननी य गांदा का आकगंगा पन्द्र, गजमहल में बाहर आन ग नहीं गा मानो हम बचाग्य की बात ही क्या है। मुप्रिया : अपनी तपस्या में ये मवमत्र ममार का कल्याण करेंगे। १०३
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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