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________________ जय वर्धम नन्दिवर्धन : अच्छी बात है। तो अब मैं लौट जाता हूँ। देलूंगा कि तुम अपने भविष्य-जीवन में माया-मोह से कहाँ तक दूर रहते हो। (नन्दिवर्धन महावीर वर्धमान को घूरते हुए जाते हैं। उनके जाते ही दूसरी ओर से नेपथ्य में वीणा और मवंग की ध्वनि आती है। दूसरे हो क्षण तीन सुन्दरियां क्रमशः नृत्य करते हुए आती हैं। ये तीनों भिन्न-भिन्न वेश-भूषा की हैं। मानो सतो गुण, रजो गुण और तमो गण स्त्री-वेश धारण कर महावीर वर्धमान को उनकी साधना से विरत करने के लिए एक साथ आ गये हैं । पहली सुन्दरी का नाम है-सुप्रिया । यह सतोगुणी है। श्वेत रंग की साड़ी, कंठ में मुक्ता-हार, कटि में किकिणी और पैरों में नपुर । माथे पर श्वेत चन्दन को पत्रावलि और श्वेत अंगराग। हाथों में होरक-जटित कंकण और माथे पर बेदी। दूसरी सुन्दरी का नाम है-रंमा, जो रजोगणी है। लाल रंग की साड़ी और समस्त परिधान अरुण वर्ण के ही हैं। कंठ में माणिक के आभूषण, हाथों में विद्युम जटित कंकण, किंकिणी और नूपुर, माथे पर केसर को पत्रावलि, बीच में अरुण बिन्दु, माथे पर माणिक को बिन्दी। तीसरी सुन्दरी का नाम तिलोत्तमा है, जो तमोगणी है । नीले रंग की साड़ी और अन्य परिधान भी श्याम और नील वर्ण का है। कंठ और हाथों में नील मणि के आभूषण, माये पर कस्तूरी बिन्दु, नेत्रों में काजल, कपोलों पर तिल, नीलम को बेसर और कुंग्ल। सभी को कुंतल-राशि में फूल-मालाएं हैं। सुप्रिया के केशों में हरसिंगार, रंभा के केशों में पाटल और तिलोत्तमा के केशों में नील कमल। सुन्दरियां नाना प्रकार के हाव-भाव करती हैं किन्तु महावीर वर्धमान ध्यानस्थ होकर आंखें बन्न किये बैठे हैं । सुनरियां नृत्य करते हुए परिहास और व्यंग्य की मुद्राएं बनाती है और ध्यानस्थ वर्धमान की आकृति को नकल करती हैं। अन्त में यक कर महावीर बर्धमान के दाएं-बाएं और सामने बैठ जाती है।) १००
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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