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________________ 12 1 Author Size Extent Date of the Copy Subject Begins -- VADIRAI -91" × 51" -99 Folios Description-Country paper, thin and greyish; Devanagari characters in legible and good hand-writing; borders ruled in two lines, edges ruled in two lines; the condition of the manuscript is satisfactory; it is a complete manuscript containing both the text and commentary; written in Sanskrit. Ends Jain Granth Bhandars In Jaipur & Nagaur -V.S. 1731 ~ALANKAR - अनंतानंत संसारपारगं पार्श्वमीश्वरं । प्रमाणनय भंगान्धि मुक्तिभूयोप्सितं स्तुवे ॥ १ ॥ वाग्म कवीन्द्र रचितालंकारस्यावचूरियममाला । जिनवचनगुरुकृपातो विरच्यते वादिराजेन ॥ २ ॥ धनंजयाऽऽशाघरवांग्भट्टानां धत्तं पदं संप्रति वादिराजः । खांडिल्यवंशोद्भवपोमसुतु जिनोत्तपीयूषसुतृप्तचित्तः ॥ ३ ॥ - संवत्सरेनिधि श्वशशांकयुक्त दीपोत्सवाख्य दिवसे सुगुरौ लग्नेऽलिनाम्नि शुभे च गिरः प्रसादात् सद्वादिराजरचिता कविचन्द्रियं ॥ १ ॥ सचित्रे | श्रीराजसहनृपतिर्जयसिंह एव श्री तक्षकाख्यनगरी भरण हिल्लतू ल्या श्रीवादिराज विबुधोऽपरवाग्भट्टोयं, श्रीसूत्रवृत्तिरिह नंदतु चाकंचन्द्रः ||२॥ श्रीमद्भीमन्टपात्मजस्य वलिनः श्री राजसिंहस्थ मे सेवायामवकाशमाप्य विहिता टीका शिशूनां हितं हीनाधिक्य वचोयदत्र लिखितं तद्वबुधैः क्षम्यताम् गाईस्ययावनिनाथ सेवन धिया कः स्वस्थतामाप्नुयात् ।। ३ ।। इति श्री वाग्भट्टालंकार टीकायां पोमराज श्रेष्टिसुतवादिराज विरचितायां कविचन्द्रिकायां पंचमः परिच्छेदः समाप्तः । Scribal remarks: तक्षक गढ़ में महाराजा मानसिंह के शासन काल में.. 'सौगाणी गोत्र वाले सम्राट गयासुद्दीन से सम्मानित साह महिला ..... वादिराज की भार्या लौहड़ी ने इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि करवाई । खण्डेलवालान्वये. साह पोमा सुत
SR No.010254
Book TitleJaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size7 MB
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