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________________ *** 3.1.7 श्री शांतिनायनो रास खंग बीजो. १३ राणां राज नहि एक नरक विए ठगेर राज || न० ॥ २० ॥ सुणि मन लजवाणो बोने चहु शेष जराणी राज ॥ ज० ॥ तुऊ श्राशय सेवा मार्ट राज, हुं बोल्ला बोल ए घाटे राज ॥ ज० ॥ २१ ॥ कुए ए तुक एहवं नांखे राज, सुरु या कहो सहु साखें राज ॥ ज० ॥ कहे सुंदरी खुणो सह कोई राज, ए जेहवो नीच न कोई राज ॥ ० ॥ २२ ॥ नवि एक मुख जीजें राज, परोही दूर करीज राज ॥ ज० ॥ नरदरिये सुख पति नाखां राज, में जिम तिम धापो राख्यो राज ॥ २० ॥ २३ ॥ कहे जगमां केम रहेवाय राज, एम मंमाणां श्रन्याय राज ॥ ज० ॥ ते मार्ट सुक्र सूकावी राज, एहने रुडे समजावो राज ॥ ज० ॥ २४ ॥ एम निर्माणी रहिया के राज का चंगुल मुहमा देई राज ॥ ज० ॥ जु माटुकार कवाई गज, करे एवं कर्मकमा राज ॥ ज० ॥ २५ ॥ एम बीजे बँकें गार्ड राज, दाल बाबीशमी सुखदायी राज ॥ ज० ॥ कहें राम करो कोइवानुं राज, पण कीधुं न रहे नानुं राज ॥नणार ॥ात नाम रा ॥ दोहा ॥ ॥ तिलकसुंदरी नृपने नांखे थे कर जोति ॥ नृप व्यादेगे ताहरु, क पन कर मन कोड ॥ १ ॥ एवं में नांख्युं हतुं राखण चीन रतन्न ॥ ते में महारं जानत्र्यं. सूकरी जनन्न ॥ २ ॥ ते माटें करवी हवे, नज शरण सुरु देव ॥ शुं वालम विण जीव, गोधन ऊपर नेह ॥ ३॥ कहे नृपति मया त. साहस में कर सुजाण ॥ परां प्रीतम तुक नगी देखाई इ गए || ३ || वतुं बोले सानती, तु थियो प्रति पाच ॥ परे हुन नवि परवान ॥ ५ ॥ राजन क प रिन्यु तुं बुक बेदी || पणदेखाईने, निजकेच ॥ ॥ यो तेने नाग्यो अधिकार ॥ कर्मप्रवेश निर्धार || ३ || राजकमी क देवराज ॥ सुंदरी नजरें निरखतजन ॥८॥ || राम ॥ ॥देशन, निरखीने मनमा एम दिमाग || किं मनाये ॥ जन ॥ ॥ पत्र . पण यां ग्रामों मानी एनी नां
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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