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________________ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कोण आएवो मुफ अांही, कोण दशा ए यहां आवी मली जी ॥१४॥ जीव म बाइश नीरू, सहस दिनारे जे गाया लही जी ॥ धर तेहनो मन नाव, शोच न लावे दिलमांहे सही जी ॥ १५ ॥ रुग्यो धरी मन धीर, नीर जोवाने चाल्यो जेटले जी॥ नहिं कोई मनुष्य प्रचार, नयर निहाले नहस तेटले जी ॥ १६ ॥ अस्थिर ए घरना रे मोह, मूकीने नानां दीले मानवी जी ॥ { हो कारण एह, कर्म तणी गति दीसे. अभिनवी जी ॥ १७ ॥ जोतां एक जलकूप, निरवीनें हरख्यो दिलमांहे घणुं जी॥ जल याकपी रे पीध, सुखीयुं ययुं रे तन मन तेह तणुं जी ॥ १७ ॥ फल कदलीनां रे आणि, कीधी कुमारे प्राणनी धारणा जी ॥ रहियो नयरथी दूर, रात एकांतें धर्मने धारतो जी ॥ १५ ॥ तिमिर पसयुं यति घोर, शीतनो जोरो पवनथकी थयो जी ॥ तरतो टाढें रे गाढ, निकटगिरि ने उपकंवें गयो जी ॥ २० ॥ मेली बदुला रे दारु, अनि उपाई कीg उतापणुं जी ॥ एकलडो वनमांहि, उदये आवे रे की, यापणुं जी ॥ २१ ॥ प्रात समय थयो एम, नूमि या अग्निये सोवनमयी जी ॥ चिंते शेतनो पूत, सोवनहीप सुएयो ते में सही जी ॥ २२ ॥ हरख्यो हियडा मकार, कंचन कीजे हवे हरखें करी जी ॥ कीधो इंट संघात, माटी लेग्ने सन कजम धरी जी ॥ २३ ॥ अग्नि तणे रे संयोग, कंचन तेहढं जाएँ नीपज्युं जी ॥ करे फल फूल बाहार, जो जो लवियो फल दवे पुण्यनुं जी॥ २४॥ वीजे खंम रे ढाल, चादमी दाखी अति रलियामपी जी॥ राम कहे रे रसाल, नाव धरीने सांजलजोगुणी जी॥२५॥ सर्वगाथा ॥३॥श्लोक॥१५ ॥दोहा॥ ॥ एकदिवस गिरिकुंजमां, जमतां नाग्यवशेण ॥ रत्नसमुच्य दीउडो, हृदय जम्युं हरखेण ॥ १ ॥ धाएयां तिहाथी ते घणां, रारव्यां सोवन पास ।। कुंवर देखि उनसित थयो, मेव्यो वदुधनराशि ॥२॥प्राणवृत्ति तिहां कणे करे, सुंदर फल लेावि ॥ रहे समाधे ते हीपमां, कुंवर सरल स्वभाव ॥३॥ हवे नवियण तुमें सांजलो, मुख दुःख फल अधिकार ॥ नाग्यथकी जे नीपजे, सरसकथा विस्तार ॥ ४ ॥ ॥ ढाल पन्नरमी ॥ ॥हांजा मारु घडी एक करहों मुकाव हो ॥ ए देशी ॥ एवं अवसरें
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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