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________________ ३६ . जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कुली नत्रीश ॥ वा ॥ इणवेलामा रानलो रे आवी, दूत नमावे शीश ॥ वा० ॥१॥रायने शंका उपनी रेवाव्यो, प्रतिहरिनो केम दूत ॥वाणा नाटक नंग करयो एवं रेयावी, कोप्या दोय नृपपूत ॥वा॥१५॥ ते सन्मानीचा लियो रे पालो, मद मूंछे वल घालि वाणापू याची दो जगा रे बागे, महोकम कूट्यो जाति ॥ वा०॥१६॥ नाटक नंग अपराधिया रेघोडी, किहां जाइश हवे नाशि ॥ वा० ॥ वात सुणी राय धावियो रे दोडी, मूकाव्यो ए दास ॥ वा ॥ १७ ॥ राय खमावे दूतने रे घहेला, ए दोय वाल स नाव ॥ वा० ॥ घर आणी संतोषियो रे वहेलो, प्रतिहार जय मन नावि ॥ वा ॥ १७ ॥ आव्यो दूत उतावलो रे वनमां, विहितो श्रमरपनाव ॥ वा ॥ समय पागल बावीने रे जनमां, नांखे ते सनाव ।। वा० ॥ १॥ राय प्रजापति सारिखो रे ॥सा॥ नहिं कांहिं तेहनो दोष ॥वा॥ पण तस अंगज जगता रे ॥ सा॥ विष.अंकूरा नास ॥ वा ॥ २० ॥ वात सवे राय सांजली रे चित्तमां, चिंते अंतरगूढ ॥ वा ॥ मौन धरीने ते रह्यो रे कृत्यमां, मतिमूंज्यो दिङ्मूढ ॥वा ॥२१॥ जावीनाव टले नहिं रे नवियां, निसुणो वीजी ढाल ॥वा॥ धन्य मुनि टाट्यो जेणे रे विरुन, महोटो मदजंजाल ॥ वा ॥ २२ ॥ सर्व गाथा ॥ ५३ ॥ श्लोक ॥ २ ॥ ॥दोहा॥ ॥ शालदेत्र प्रतिविमुनें, वे बहु निज परिजोग ॥ तास उपश्व नित्य करे, सिंह सवल बनयोग ।।१॥ तस चोकी चोंपे करे, प्रतिवर्षे राजान॥ छारें वहुपरिवारयुत, नृप आदेश सुजाण ॥ २ ॥ तिण वर्षे चारक विना, वाजिग्रीव नृपत्त ।। दुकम प्रजापतिने करे, मूकी दूत तुरत्त ॥३॥चित्त मां चिंता कपनी, दूतथकी थयुं काम ॥ कयुं कुकर्म अविचारिने, उदयें आव्युं आम ॥॥ यतः॥ सहसा विदधीत न किया, मविवेकः परमापदां पदम् ॥ तृपुते हि विमृश्यकारिणं, गुगलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥ १ ॥ काज विचारीने करे, रहे तेउनी लाज ॥ अति उत्सुक कतावला, ते विसाडे काज ॥ ५ ॥ यमुक्तं ।। सुगुणमएगुणं वा कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्नतः पंमितेन ॥ अतिरनसरूतानां कर्मणामाविपत्ते, नवति हृदयदाही शव्यतुल्यो विपाकः ॥ २॥
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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