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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम उद्यो. ३तए जोडे आदि ॥७॥ यज्क्तं ॥ कार्ये गुनेऽगुनेवापि प्रतियः कृतादितः ॥ । नेद्यास्ते तस्य कर्तारः, पश्चादप्युपचारतः ॥ ३ ॥ पूर्वढाल ॥ उपनोग परिजोग वस्तुने, अधिक न मेले जाण ॥ अधिक माग्य आपतां, होय अनर्थ गुणहाणि ॥ ए ॥ एह अतिचार पांचमो, वो निरतीचार ॥ ए यष्टम व्रत पालतां, लहियें नवनो पार ॥१॥ एह उपर प्रनुजी कहे, समृदिदत्त संबंध ॥ चकायुध नृप सांजले, नाव नक्ति अनुबंध ॥ ११ ॥ ॥ ढाल साडत्रीशमी॥ . ॥जीरे जी॥ ए देशी ॥ जीरे धातकी खंम मकार, देव नरत रैपुर नटुं जीरे जी ॥ जीरे तिहां रिपुर्मदन राय,यश जगतमां मजदूं ॥ जीरे जी ॥१॥ जीरे समृद्धिदत्त सुविचार,कौटुंबिक तिण पुर वसे ॥जि॥ जीरे कुटुंबतो स्वामि, हर्षे हियामां उनसे ॥जी॥॥ जीरे एक दिन सूतो सेज,मनमांहे एम चिंतये ॥जी॥जीरे जो हुँ या नूप, जरत खेम साधु सवे ॥जी॥३॥ जीरे साधतो जानं वैताढय,दे विद्या ननचर नली॥जी॥जीरे विद्यावल श्राकाश, तब कहुं हूँ मन रली ॥जी॥॥ जीरे एम चिंतवतो ताम,सेजश्री उचो उदयो । जी० ॥ जीरे पडतो ते नूपीत, पडियो गृहमानवें कल्यो ॥ जी० ॥ ५ ॥ जीरे पीडाणो तन जोर, करे याकंद अति घणो ॥जी॥ जीरे स्वजन मिल्यां तव धाइ, मु ययुं तुम अमने जपो ॥ जी० ॥ ६ ॥ जीरे रहिया मुफ मनमांहे, मनह मनोरथ मादरा ॥ जी० ॥ जीरे उठ ली मूढ गमार. पग नांज्या ते ताहरा ॥जी॥७॥ जीरे घाणू निब्यो तास, केतक दिने साजो थयो ॥ जी० ॥ जीरे पाले ते निजगेह, दिव डामा हर्पित दुई ॥जी॥ ७ ॥ जीरे एक दिन ली, तेण, खग अमू . तक उपतुं ॥जी॥ जीरे जे खनन तेज.अवर नहिं कोई जीपतुं ॥ जी ।। (y l जीरे पुरमां पसरी वात. खग तणी अतिही घणी ॥ जी ॥ जीर एक दिन पुग्ने नृप, सनामां बेठे सुणी ॥ जी० ॥ १० ॥ जीरे एक दिन वहरतन्न. प्रमादयकी तस बिसयुं ॥जी॥ जीरे गृहयंगण ते मृकि, मांदे डायन जई कायं ॥जी॥११॥ जीरे सांजग्युं तस मध्यराति. पण प्रमादेन श्राणियो । जी० ॥ जीरे चिंत कुण ले जाय, रह्यो निधितो प्राणीयो । जी० ॥ १२ ॥ जीरे चोरें दो तेणी गति, खह लेने ते चल्यो । जी० ॥ जीरे शेडनो मुत्त ग्रही वंदि, जानां नृप सेवक मिल्या ।। जी ॥
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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