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________________ 4 daअ. श्री शांतिनाथनो रास खंम बीजो. ॥अथ दितीयखंमस्य प्रारंनोऽयं ॥ ॥दोहा॥ ॥ अरिहंत सिह नमूं वली, आचारिज उवद्याय ॥ साधु सकल प रमेष्टिपद, नजियें नित सुखदाय ॥१॥ वीजो खंग र हवे, सरस कथा अधिकार ॥ शांतिनाथ नववर्णना, करतां नव निस्तार ॥ ॥ सुर लोकें सुख जोगवे, मनोवांनित वर योग ॥ नाटक व वत्रीशमा, नित नित नवला जोग ॥ ३ ॥ वैमानिक सुख जोगवे, ते चारे पुण्यवंत ॥ चवी कीहां ते अवतरे, ते दाखू विरतंत ॥ ४ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ देशी चोपानी ॥ जंवधीपें नरत मकार, वैताढ्य नामें पर्वत ज. सार ॥ पहोलपणे जोया पञ्चास, उंचपणे पचवीश विलास॥१॥राजे रजत , तो गिरि तेह, कपर सोहे जिनवर गेह ॥ पुण्यवंतने वसवा उगम, उ ॥ नरश्रेणें पुर अनिराम ॥ २ ॥ नामें रथनूपुर चक्रवाल, कमें सोहे काक जमाल ॥ विद्याधर सुखीया सदु कोय, फुःखीयो नामें न वसे कोय ॥ ॥ ३॥ साते सुख जिहां वासो वसे, धर्मी सदु धर्म उनसे ॥ साते सुखनां १०. दाखं नाम, काव्यथकी सुगजो मन मम ।। ४ ॥ काव्यं ॥ नीरोगत्वं नन वति झणं चाऽप्रवासी तथैव, वासोनित्यं स्वजनसहितोनिर्नयस्थानकेषु ॥ लक्ष्मीः कांता तदनुसुनगा संगतिः श्रेष्ठपुंसां, चिनं गु६ विमलक पया सप्तधा सौख्यमेतत् ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ तिए नगरी विद्याधर धणी, ज्वलनजटी नामें बहुगुणी ॥ विद्यावंत वारू सुविवेक, वायुवेगा तस गृहि पी एक ॥ ५॥ लवणिम रूप गुणें उपती, शोल शृंगारे ते शोनती॥त यथा ॥ श्लोक ॥ श्रादो महानचारुनालतिलकं नेत्रांजनं कुंमलं, ना सामौक्तिकहारचारुकुसुमं ऊंकारवनूपुरम् ॥ अंगे चंदनलेपकंचुकमणिकु शवलीघंटिका, तांबुलं करकंकणं चतुरता शृगारकाः पोडश ॥ २ ॥ पूर्वटाल ॥ ए सोले ऊपर शिरदार, नारीने सजा धाचार ॥ ६ ॥ तलावंती ने माहासती, रु दासी कीधी रति ॥ अमुपन सूचित जुत जल्यो, थर्ककीनि नामें बदु नाम्यो ॥ ७ ॥ चोवन वय सद्ध मन ना वियु, युवराज पद शोनावीयु ॥ तदनंतर एक पुत्री जणी, चंश्लेखा सू ति म.
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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