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________________ श्री शांतिनायनो रास खंग उठो. ३३८ नारी तस घर जाती दीवी रे ॥ ना० ॥ १० ॥ ते गइ एम उत्तर दीधो रे ॥ ना० ॥ ते चाल्यो नगर नली सीधो रे ॥ ना० ॥ मनमांहे करे एव चार रे ॥ ना० ॥ कनो गुणधर्म कुमार रे ॥ ना० ॥ ११ ॥ तद्यथा ॥ दध्यो च नोपकारेण, नांजसा दंत योषितः ॥ गृह्यंते न कुलं शीलं, मर्यादां गणति च ॥ १ ॥ रहोन जायते यावत्, ऋणस्यार्थयिता न च ॥ सतित्वं तावदेतासां, नारीणां नारदोऽवदत् ॥ २ ॥ पूर्वढाल || एम चिंती कुमर तिहां खावी रे ॥ ना० ॥ तेहने एम तेणें समजावी रे ॥ ना० ॥ कहे तो तुक मोशाल मूकूं रे ॥ ना० ॥ हुं नवनावतथी चूकूं रे ॥ ना० ॥ १२ ॥ तिहां पासें नगरमा यावी रे ॥ ना० ॥ तेहने मातुलघरे वो लावी रे || ना० ॥ जइ तेह मुनिनी पासें रे || ना० ॥ ग्रहे चारित्र दिल उल्लासें रे ॥ ना० ॥ १३ ॥ करे किरिया तप तपे काठां रे ॥ नाणा घणां कर्म खपाड्यां मागं रे ॥ ना० ॥ थयो तेह माहाव्रत धोरी रे | ना० ॥ चढती परिणामनी दोरी रे | ना० ॥ १४ ॥ करि यास सुरपद लीधुं रे ॥ ना० ॥ तेहनुं वांबित कारज सीधुं रे ॥ ना० || तिहांथी चवि नर जव पामी रे ॥ ना० ॥ ते थाशे शिवगतिगामी रे ॥ ना० ॥ १५ ॥ वे कनकवतीनी कहाणी रे ॥ ना० ॥ निसुणो तुमें सहुये प्राणी रे ॥ ना० ॥ श्रावी मातुलघरथी रीसाथी रे ॥ ना० ॥ थइ गुणचंदनी थपि चाणी रे ॥ ना० ॥ १६ ॥ राजकुमरने ते घणुं प्यारी रे | ना० ॥ तेणे मूकी वर विसारी रे | ना० ॥ तव चिंते हो पहेली राणी रे ॥ ना० ॥ एणें नारी कुजात ए प्राणी रे ॥ ना० ॥ १७ ॥ एणें कामण मोहन कीधो रे ॥ ना० ॥ महारो पियुडो वश करि लीधो रे || ना० ॥ जगमांहि खार ए महोटो रे ॥ ना० ॥ परनवडुःखदायी खोटो रे ॥ ना० ॥ १८ ॥ तेणें नोजनमां विष दीधुं रे ॥ ना० ॥ मारी कनक वतीने वेर लीधुं रे ॥ ना० ॥ ध्यान रोमांहे ते मूई रे ॥ ना० ॥ पोथी नरके नारकपणे दूई रे ॥ ना० ॥ १५ ॥ जुवो उत्तम कुननी जाई रे ॥ ना० ॥ शी कीधी कर्मकमाई रे ॥ ना० ॥ दुःखमांहे काल निर्गमशे रे ॥ ना० ॥ तिहांथी नव बहुला नमो रे ॥ ना० ॥ २० ॥ कहे प्रभुजी शांति जिलंदा रे ॥ ना० ॥ विरुथा ए विषयना फंदा रे || ना० ॥ दुःखदायी ए विषयमादो रे ॥ ना० ॥ महोटी जग ए उन्मा
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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