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________________ ३७ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. हरे, वाहारें, श्री गुणधर्म कुमारजी ए ॥ ३५ ॥ त्रिनुवनपूज्य ए जिनवरु, महारे एह परमेश्वरु, सुरखकरु, आ नव परनव ए सही ए ॥ ३६॥ ते समस्यो जिन चित्तथी, हवे न चूकुं ध्यानथी, कोहि नथी, मुज चिंता मर वा तणी ए ॥ ३७ ॥ नहिं को मात ने नात ए, महारो सगो सुजात ए, वात ए, एक गुणधर्मनी माहरे ए ॥ ३० ॥ खड्ग उपाडे जाम ए, कुम रें हांक्यो ताम ए, काम ए, नीच तणुं मांमधु किस्मु ए ॥ ३ ॥ प्रकट थइने एम कहे, नारीवध नव नव दहे, सदहे, सजान गुरुनी शीखडी . ए॥ ४० ॥ यमुक्तं ॥ विश्वस्ते व्याकुले लोके, बालवमाऽवलाजने ॥ प्रह रंति च ये पापा, ध्रुवं ते यांति उगतिम् ॥ ४ ॥ पूर्वढाल ॥ स्त्रीहत्या पात क तणा, कारक सांजल निर्गुणा, तुफ तणा, अवगुण हुँ केता कहुँ ए॥ ४१॥ प्रायश्चित्तनो दाता ए, मलियो ढुं विख्याता ए, झाता ए, जेम जग माहे गुरु कह्यो ए ॥ ४२ ॥ विद्याधर तव वोलीयो, अंतरपट सवि खोलीयो, मलीयो, मनोवांनित सवि माहरो ए ॥ ४३ ॥ जेहनो घात में ध्याइयो, ते मुज सहामो वीयो, पाइयो, तुं कीy हवे ताहरूं ए॥ ४४ ॥ सहामा वेदु आवी घड्या, वलीया बहु रोपें चड्या, ते लज्या, एक कामिनीने कारणे ए ॥ ४५ ॥ अवसर लही कुमार ए, कीधो तेहने प्रहार ए, सार ए, शिर उद्यं खेचर तणुं ए॥ ४६ ॥ सेवक सहु तस ना ना ए, कर दीता घणुं काता ए, मान ए, कर्म कखां आवे नदे ए॥ ४७॥ सहुने दीध दिलासो ए, शा माटें तुमें नासो ए, सांसो ए, मत क रशो कोई रागनो ए ॥ १७ ॥त्रण वाला आवी नमी, अमें परवशता बदु खमी,सवि शमी,थापद याज अमारडी ए ॥४॥ बहे खंमें शोलमी, ढाल सऊन मन संक्रमी, नवि गमी,राग दशा परनारीनी ए॥५॥५४॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ अमने मूकावी तम्हें, विद्याधरयी याज॥ बोडावे जीव पापथी, जे म गुरु गरीव निवाज ॥ १ ॥ कहे गुणधर्म कुमार जी, कुण तुमचो अव दात ॥ एक चतुरा वोली तिहां, सुरा स्वामी मुज वात ॥ २ ॥ शंखपुरा निध नयरनो, राजा उसनराज ॥ पुत्री कमलवती अg, तेहनी हुँ महा राज ॥ ३ ॥ जय एहने में वनहो, वांग्यो नहिं लगार ॥ कुमर कहे जय नेहथी, किंवा कोप विकार ॥ ४ ॥ कुमरी कहे ए उपरें, नहिं नेह तिल
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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