SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री शांतिनायनो रास खंग चहो. ३०१ सात दिवस या वरसतां रे || म० ॥ करे चक्रीश विचार हो ॥ ज० ॥ ॥ १८ ॥ शोल सहस यह स्वामी के रे ॥ म० ॥ श्रंग अलग करनार हो || ज० ॥ यही हथीयारने धाइया रे || स० ॥ जिहां वे जलद कुमार हो ॥ ज० ॥ १५ ॥ रे पापी तमें गुं करो रे ॥ म० ॥ वि खुटे मरणाश हो ॥ ज० ॥ विरमो नहिंतर पामशो रे ॥ म० ॥ तुमें ग्रम्हहंती विनाश हो ॥ ज० ॥ २० ॥ जय पामीने उसखा रे ॥ म० ॥ जइ नमीया प्रनुपाय हो ॥ ज० ॥ में अपराधी याकरा रे ॥ म० ॥ तुम्ह गिरु या जिनराय हो ॥ ज० ॥ २१ ॥ तृण लेई मुखमां सवेरे ॥ म० ॥ करे घरवास हो ॥ ज० ॥ गुनह खमो ए अम तपो रे ॥ भ० ॥ तुम साहिब हम दास हो ॥ ज० ॥ २२ ॥ नतवत्सल भगवंत जी ॥ म० ॥ गुनह करे वकसीत हो ॥ ज० ॥ हय गजवर मणि भेटणां रे ॥ म० ॥ मूकी नामें शीश हो ॥ ज० ॥ २३ ॥ सेनानीने मूकियो रे || म० ॥ बीजो निष्कृट सिंधु हो ॥ ज० ॥ साथीने घावो वही रे ॥ म० ॥ हुकम करे जगबंधु हो ॥ ज० ॥ २४ ॥ जइ सेनानी साधिया रे || म० ॥ तिहांना देश अनेक हो ॥ ज० ॥ ते संघला छावी नम्या रे || ज० ॥ मनमां धरिव विवेक हो ॥ ज० ॥ २५ ॥ जइ रुपनकूट शांति जीरे ॥ म० ॥ लम्बे पोतानुं नाम हो ॥ ज० ॥ शांति साहिबी रे ॥ म० ॥ सीध्यां वांवित काम हो || ज० ॥ २६ ॥ गंगोत्तर निष्कृट तिहां रे ॥ म० ॥ नाथै सेनानी जाय हो ॥ ज० ॥ संप्रपात गुहा श्राविया रे । म० ॥ कृतमाल सुर विष्ठाय हो ॥ ज० ॥ २५ साधीने मनु नि सख्या रे || म० || गंगातट श्रदिवाण हो ॥ ज० ॥ गंगा घ्यावीने कदे रे ॥ म० ॥ जय जय श्री जिननाण हो ॥ त० ॥ २८ ॥ न खं सातमी रे ॥ म० ॥ हाल नाणी सुखकार हो ॥ ज० ॥ रामविजय कहे पुण्ययी रे || म० ॥ जहिये जय जयकार हो ||ज||२५|| सर्व गाया ||२१||| लोक || दोहो सोरठी || ॥ गंगानदें निवास, सामी करे मेनातणो ॥ दवे जुने पुष्यविलास, जी तां ॥ १ ॥ जे प्रकटे || हाल प्याम्मी || देश ॥ रवि राय, || देशी ॥ वादन योजनने श्रायाम,
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy