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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंग पांचमो. इथए नेज थावास ॥ ली० ॥ शयन कमु सुखियो थयो ॥ गु० ॥ आनंद नील विलाल ॥ ली ॥ २२ ॥ पंचम खमें गणीशमी ॥ गुण ॥ ढाल ही ससनेह ॥ ली० ॥ रामविजय कहे रंगमु ॥ गु० ॥ वत्त जयो पुणगेह ॥ ली० ॥ २३ ॥ सर्वगाथा ॥६३४॥ श्लोक तया गाथा ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ वस्त्र लेई ते यावीयो, नृपपासें परमात ॥ करि प्रणाम कनो रह्यो, वर कुलविख्यात ॥१॥ नृप आगल सवि रातनो, नांख्यो तेणे विरतंत ॥ गत सुपी विस्मय लह्यो, मासो ते नूकंत ॥ २ ॥ वसन तेह देवीत', प्राप्युं नरपति हाथ ॥ रयजडित देखी करी, हरव्यो ते जूनाथ ॥ ३ ॥ राणीने ते सोपीयुं, हरखी मन अत्यंत ॥ पहेयुं पए कंचुक विना, शोना से न लहंत ॥ ४ ॥ राणी कहे प्रीतम नणी, ए सरिखो कूस ॥ पाणी थापो मुझने, प्राणेश्वर सुविलास ॥ ५ ॥ राय कहे वत्सराजने, पहेरण । वस्त्र समान ॥ जो कंचुक पाणी दीये, तो दुवे हर्प अमान ॥६॥ -- वचन प्रमाण कयुं तदा, जइ वन चंदनद ॥ कोटरथी खेचरी तj, श्राएगी यापे दद ॥ ७ ॥ पहेरी सा परसन थर, मासी दें थाशीप ॥ वत्सराज चिरंजीव तुं, पूरी मनह जगीश ॥ ७ ॥ ॥ ढाल वीशमी॥ ॥ नमो रे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर ॥ ए देशी ॥ लाने लोन घणे रो वाधे, तृमा नवि योनाय रे । जेम जेम पूरणने धन सींचे, तेम तेम बदुली थाय रे ॥ १ ॥ लानें ॥ ए धांकणी ॥ ते वेदु चीवरने श्रण सरिर, निज उत्तरीय निहाजिरे ॥ कमल श्री करे मनमांहे थारति, कर देई निज नाल रे ॥ ला० ॥ २ ॥धारति धरती नृपति निहाली, पूठा यावी ताम रे ॥ श्याममुखी केम दीसे कामिनी, श्यो तुज मनमांह काम रे । ला ॥ ३॥ सुणो वालम कहेतां दुं लाजूं, कहे नृप झी मुक लाज रे ॥ तुण सुंदरी ते लाज न कीजें, जेहयी विणने काज रे ॥ ला ।। ५ ॥ गगी कहे उत्तरीय मजे जो,ए सरिखं अवनीश रे ॥ तो मुज मन संतोष लदे एम, कदे नामी निज शो रे ॥ ला० ॥ ५ ॥ नृपति चिते लोन तणोप, योन न दीसे कोय रे ॥ कामिनी जातें प्रयगुण माये, जगमां बद्धलो होय रे ॥ ला० ॥ ६ ॥ यतः ॥ यतृत साइत माया,
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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