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________________ जैनकथा रत्नकोप नाग आग्मो. कस्खा ॥३॥ कर जोडी हो निसुणे मुनि वाणी के, पूरवनव पूजे किस्यो॥ कहे नाणी हो सुणो धातकी खंम के, ऐरवतें वजपुर इस्यो ॥ ॥ तिहां अनयथी हो घोपानिध राय के, हेमतिलकानो नाहलो ॥ दोय कुंवर हो जय विजयनो तात के, सोजागी महिमानिलो ॥ ५ ॥ शंखनूपति हो पुर एहवे सुवर्ण, के तस पृथिवीराणी जणी ॥ एक तनया हो - कंचनवर्ण के, पृथ्वीसेना वदु गुणी ॥६॥ आवी साहमी हो स्वयंवर था तेह के, परणी अजयघोष कंथने ॥ मृगनयणी हो मनोहर सुकु मार के, मन मानी घणुं संतने ॥ ७ ॥ वनमाहे हो अन्य दिवस वसंत के, नृप चाट्यो रमवा जणी ॥ शतराणी हो साथे उद्यान के, वनशोना जोवे घणी ॥ ॥ तिहां जोती हो वनतरुवरराजि के, पृथ्वीसेना पदमि पी॥ मुनि देखे हो दांत मदन महंत के, धन्य घडी मुज थाजनी ॥५॥ सुपी देशन हो पामी प्रतिवोध के,आण लही जरतारनी॥यहे दीक्षा हो शिक्षा धरे अंग के, समजावें नवतारिणी ॥ १० ॥ अनुमोदी हो वत्तीयो नूपाल के, निजपुरमांहे आवीयो ॥ पडिलाने हो एकदिन श्री अनंत के, जिन उद्मस्थनो जावियो ॥ ११ ॥ नृप आंगण हो प्रगट्यां पंच दिव्य के, जय जय सुर मुख उच्चरे ॥ लडें केवल हो जगवंत अनंत के, धनुक्रमें सुर सेवा करे ॥ १२ ॥ तस पासें हो वेदु तनय संघात के, दीख अजय घोप यादरे ॥ वीश स्थानक हो सेवे मुनिराय के, जिनपद नीकाचित करे ॥१३ ॥ सुत मुनिशुं हो अच्युत सुरलोक के, अजयघोप सुरवर थया ॥ तिहांथी चची हो श्री अजयघोपजीव के, राजा धनरथजी दुवा ॥१४॥ जय विजयना दो चवीया दोय जीव के, तुम्हें बंधव वेदु अवतस्खा ॥ एम नांव्युं हो सागरचंद साधु के, पूरवनव सुणी चित तस्यां ॥ १५ ॥ कहे मेवरथ हो ते खेचर दोय के, पूरवनव नेहें करी ॥ तुम नमवा हो मल वाने काज के, श्राव्या इहां चित्त हित धरी ॥ १६ ॥ चरणायुध हो ज. जता देखि के, बेदुजण वेदु अदिहिया॥ निज प्रातम दो गोपवीने यांहिं के, विद्यावलगुं पश्चीया ॥१७॥ नुपी ए हो मेवरथजीनुं वयण के,ते खे चर परगट या ।। कर जोडी दो धनरथजीना पाय के, प्रणमे हियडे गह गही ॥ १५ अम्ह पूरव हो नवचा तुम्हें तात के, जाग्यनने प्रल ने टीया ॥ ययां लीवन हो सफलां जगनाथ के, पुःख दोहग सवि मेटी
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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